सरकारी रिकार्ड में लोहण्डीगुड़ा विकासखण्ड के 42 पंचायतों के अंर्तगत कुल 83 ग्राम है लेकिन स्वत: लोहण्डीगुड़ा वर्षों से एक विरान गांव है। उसरीबेड़ा -गढ़िया मार्ग पर सड़क किनारे बाजार परिसर में मां लोहण्डी का सैकड़ों साल पुराना मंदिर है। जिला पुरातत्व संग्रहालय के संग्रहालयाध्यक्ष एएल पैकरा बताते हैं कि मंदिर के गर्भगृह में मां दुर्गा के एक रूप लोहण्डी के नाम से लगभग 12वीं शताब्दी की दुर्लभ “ङतिमा हैं, वहीं मंदिर परिसर में माता सरस्वती की एक और गणेश जी की द “ङतिमाएं हैं।
यह भी छिंदक नागवंशीय काल की “ङतीक होती हैं। इस मंदिर का गर्भगृह जो 100 वर्गफीट में बनाया गया है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार गर्भगृह वाला यह भू भाग ही विरानग्राम लोहण्डीगुड़ा है। लोहण्डीगुड़िन मंदिर के पुजारी धनश्याम ठाकुर ने बताया कि रियासत काल से लोहण्डीगुड़ा और बेलियापाल एतिहासिक स्थल रहे हैं। बताते हैं कि इन दोनों गांव के मैदान में ही चित्रकोट के राजा हरिश्चन्द्र और उनकी बेटी चमेली के साथ वारंगल से आए राजा अन्न्मदेव का युद्ध हुआ था।
मंदिर का गर्भगृह ही लोहण्डीगुड़ा कहलाता है। मंदिर के चारों तरफ बसी आबादी ग्राम पंचायत धर्माऊर का वार्ड क्र. एक है और यहां 900 वोटर है। लोहण्डीगुड़ा के नाम से कहीं और बस्ती नहीं है। वहीं धर्माऊर के गुन्नू सिंह ठाकुर बताते हैं कि सरकारी रिकार्ड को ही माना जाए तो लोहण्डीगुड़ा संभवत: देश का सबसे छोटा गांव है, जो किसी देवी के नाम पर है। मंदिर में सप्ताह में तीन दिन माता की विशेष पूजा होती है