कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत के बाद संस्कार के लिए शव हासिल करने के लिए स्वजनों को लंबी दौड़ लगानी पड़ रही है। तीन से चार दिन शव गुरुनानक देव अस्पताल की मोर्चरी में रखा जा रहा है। मोर्चरी में शव को सुरक्षित रखने के लिए कूलिंग प्लांट तक नहीं है। अस्पताल प्रशासन तर्क देता है कि मृतकों के स्वजनों की रिपोर्ट न आने तक शव नहीं दे सकते। सरकारी बेरुखी का आलम यह है कि स्वजन शव का अंतिम संस्कार करने के लिए गिड़गिड़ाते हैं, पर उन्हें अधिकारियों की हरी झंडी नहीं मिल रही।
बीते सप्ताह लाहौरी गेट निवासी कोरोना संक्रमित 45 वर्षीय शख्स की मौत के बाद उसका शव तीन दिन तक मोर्चरी में ही पड़ा रहा। दरअसल, इस शख्स को 10 जून को गुरु नानक देव अस्पताल लाया गया था। अस्पताल के कर्मचारी उसे आइसोलेशन वार्ड ले जा रहे थे कि उनकी मौत हो गई। शाम को रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद शव को अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया गया।
स्वजनों ने शव की मांग की तो डॉक्टरों ने कहा कि इनके संपर्क में आए सभी लोगों का टेस्ट होगा। 11 जून को मृतक के पांच स्वजनों के सैंपल लिए। मृतक के पुत्र मनीष कुमार के अनुसार, उन्होंने डॉक्टरों, अस्पताल प्रशासन व पुलिस के आगे मिन्नतें कीं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। हमारी रिपोर्ट 36 घंटे बाद मिली। हम सभी नेगेटिव थे।
उधर, पिता का शव मोर्चरी में भीषण गर्मी में रखा था। यहां कूलिंग का कोई प्रबंध नहीं था। नेगेटिव रिपोर्ट लेकर अस्पताल प्रशासन के पास पहुंचा तो जवाब मिला कि अब सिविल सर्जन से बात करो। उन्होंने आरोप लगाया कि सिविल सर्जन डॉ. जुगल किशोर को दर्जनों बार फोन किया, पर उन्होंने नहीं उठाया। 13 जून को शाम साढ़े चार बजे हमें पिताजी का शव दिया गया। तब शव में बदबू उठ रही थी। दूसरा मामला ढाब खटिकां क्षेत्र से संबंधित है। कोरोना पॉजिटिव इस शख्स की मौत 11 जून को हुई। दो दिन तक शव मोर्चरी में रखा गया। 13 जून को शव दिया गया तो उसमें बदबू उठ रही थी।
फ्रीजर व बर्फ की सिल्लियां रखी हैं : प्रिंसिपल डॉ. सुजाता
गुरु नानक देव अस्पताल मेडिकल कॉलेज की ङ्क्षप्रसिपल डॉ. सुजाता शर्मा ने कहा कि कोविड-19 पॉजिटिव लोगों के मोर्चरी में रखने के लिए दो फ्रीजर हैं। इसके अतिरिक्त शवों को सुरक्षित रखने के लिए हमने बर्फ की सिल्लियां भी रखी हैं। ऐसे में शव खराब तो नहीं हो सकते। वैसे शव का अंतिम संस्कार करवाने का जिम्मा जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग का है।