ऐतिहासिक विरासत को समेटे आठों का मेला एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब को दिखाने के लिए तैयार है। मंगलवार को मां शीतला देवी के दर्शन के साथ ही शहर में रंगोत्सव का समापन होता है और मेले की शुरुआत होती है।
इतिहासकार पद्मश्री डॉ.योगेश प्रवीन ने बताया कि श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लव ने मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर परिसर में घोड़ा पकड़े हुए प्राचीन मूर्तियां भी लगी हैं। मंदिर के पास गोमती नदी का रास्ता भी था। यह भी कहा जाता है कि कनकोहर की बाग में एक बार बनजारों का डेरा पड़ा।
एक दिन शीतला देवी की प्रतिमा उनके हाथ लगी और बनजारों के सरदार ने पेड़ के पास प्रतिमा रख दी। मंदिर में बने घोड़े और प्रतिमा की बनावट मंदिर को अलग करती है। 1775 में नवाब आसिफुद्दौला के दीवान राजा टिकैतराय ने शीतला देवी मंदिर का जीर्णोद्धार करके नवाबी काल की कला का उत्कृष्ट नमूना पेश किया था।
माली के हाथों ही मंदिर की कमान होती है। देसी घी की ज्योति के संग मां शीतला देवी के दर्शन कराने से बच्चों में चेचक व खसरे का खतरा नहीं रहता। हर वर्ष होली के आठवें दिन मेला लगता है।
राजधानी के मुख्य ऐतिहासिक मेलों में इसका अलग स्थान है। मां को बासी भोजन चढ़ाया जाता है। इसके बाद से गर्मी का मौसम शुरू होता है और श्रद्धालुओं को बासी भोजन पर विराम लगाने का संदेश भी दिया जाता है।
मेहंदी गंज के कटरा खुदायार खां और टिकैतगंज के बीच स्थापित मंदिर के गुंबद पर लगी पताकाएं दूर से ही मंदिर होने की अनुभूति कराती हैं। राजधानी के ऐतिहासिक साढ़े तीन मेलों में यह शामिल है।
हुसैनगंज का गुडिय़ा मेला, कतकी मेला, मसानी देवी के मेले के साथ ही इस मेले को आधे मेले की संज्ञा दी गई है। मंदिर के पुजारी श्याम मनोहर तिवारी ने बताया कि बासी मालपुआ चढ़ाकर व्रती महिलाएं न केवल इसका सेवन करती हैं बल्कि चांद के आकार की बनी चीनी की पट्टी हिंदू-मुस्लिम एकता का बखान करती है।
शीतलाष्टमी के दिन माता शीतला देवी को महिलाएं हलवा पूड़ी, गुलगुला, पुआ, ऐठी-ग्वैठी (बसौढ़ा) का भोग लगाती हैं। महिलाओं के मां शीतला देवी को बसौढ़ा चढ़ाने के साथ ही बासी भोजन का सेवन बंद हो जाता है।
गर्मी बढऩे के साथ ही बासी भोजन खराब हो जाता है। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए मां को बसौढ़ा चढ़ाने के बाद बासी भोजन न करने का संकल्प लिया जाता है। इसके साथ मां से गर्मी में शीतलता प्रदान करने की कामना भी की जाती है।
टिकैतराय तालाब के आसपास जगह की कमी के चलते इस बार बच्चों के ब्रेक डांस, ज्वांडबिल, कार, मिकी माउस व ड्रैगन के साथ झूले अपट्रान उपकेंद्र के पास लवकुश रोड के पास पार्क में लगाया गया है।
मेले के साथ इस बार पहली बार जवाबी कीर्तन भी होगा। मेहंदीगंज के रामलीला मंच पर रात्रि 10 बजे से होने वाले आयोजन में कानपुर के सचदेवा कानपुर और हमीरपुर की दुर्गेश नंदनी के बीच मुकाबला होगा।
शीतला अष्टमी के मेले के बाद दूसरे दिन बुधवार को आलमनगर के श्री दुर्गा देवी मंंदिर के पास मेला लगेगा। यहां से दुकानदार वहां जाते हैं। यहां के बाद गुरुद्वारा हसनगंज बावली स्थित मां मसानी देवी के मंदिर के पास मेला लगेगा।