भारत सीमा पर अपनी एक भी इंच जमीन नहीं छोड़ेगा: PM मोदी

चीन का मंसूबा चाहे कितना खतरनाक हो, लेकिन भारत सीमा पर अपनी एक भी इंच जमीन नहीं छोड़ेगा। उच्चपदस्थ सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट बैठक में क्षेत्रीय अखंडता और देश की संप्रभुता के लिए प्रतिबद्ध रहने का निर्णय लिया गया है।

बताते हैं कि चीन के साथ सीमा सुरक्षा प्रबंधन और द्विपक्षीय मामले निबटाने के अभी तमाम फोरम हैं। राजनयिक और सियासी स्तर की वार्ता के दरवाजे भी है। भारत आपसी चर्चा के जरिए इसे सुलझाने का पक्षधर है।

समझा जा रहा है कि 17-18 जून तक एक बार फिर भारत और चीन के बीच में बातचीत के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ने की सूचना आ सकती है।

बताते हैं प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में सीसीएस की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, गृहमंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, एनएसए अजीत डोभाल, सीडीएस जनल रावत समेत अन्य थे।

सीसीएस से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विदेश मंत्री एस जयशंकर, सीडीएस जनरल रावत, तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की थी। उन्होंने और विदेश मंत्री ने अपने स्तर से प्रधानमंत्री को ताजा हालात और भावी कदमों को लेकर चर्चा की थी।

देर शाम सीसीएस खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री और अमित शाह के बीच में भी चर्चा हुई। समझा जा रहा है कि इसमें दोनों शीर्ष नेताओं ने ताजा हालात के साथ-साथ आगे की रणनीति पर विचार किया है।

सैन्य सूत्रों का कहना है कि चीन गलवां नाला (नदी) के आस-पास मौजूदगी पर अड़ा है। चीन की मंशा दौलत बेग ओल्डी पर सीधे निगाह रखने की है। वह फिंगर-4 से भी पीछे हटने के पक्ष में नहीं है।

पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 पर ही 15-16 जून को भारत-चीन के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी। इसके अलावा श्योक, दुरबक, पैगांग त्सो के पास भी उसके सैनिक जमें हुए हैं। करीब 15 हजार से अधिक चीनी सैनिक भारी वाहन आदि के साथ क्षेत्र में जमें हुए हैं।

बताते हैं चीन अक्साइ चिन के पास भारत की फौज, उसकी आवाजाही नहीं होने देना चाहता। वह अक्साइ चिन को अपना बताता है और भारत इस पर अपना दावा करता है। गलवां नाला के ऊपर से तिब्बत के पहाड़ साफ दिखाई देते हैं।

दूसरे चीन को पाक अधिकृत कश्मीर की भी चिंता सता रही है। भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी कंपनियों के विकास की योजना और वन बेल्ट वन रोड के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कोशिश पर लगातार विरोध जारी रखा है।

ऐसे में लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और भारतीय संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में मिलाने के दावे के बाद से चीन चिढ़ा है।

भारत और चीन के सैनिकों के बीच में 5 जून को संयुक्त सचिव स्तरीय वार्ता होने के बाद तनाव सामान्य होने की तरफ बढ़ने लगा था। 6 जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता के बाद और अच्छे संकेत आए थे।

बताते हैं सैन्य कमांडर स्तर पर बनी सहमतियों को अमल में लाने के लिए भी रविवार को भारतीय सैनिकों की टुकड़ी कमांडिग आफिसर कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में प्वाइंट 14 के पास गई थी। इसने चीन के सैनिकों से सहमति के आधार पर पीछे हटने के लिए कहा, लेकिन चीनी सैनिकों ने इसका प्रतिवाद किया।

भारतीय सैनिक बिना हथियार के थे जबकि चीन के सैनिकों के पास कंटीली लाठियां आदि जैसे ब्लंट हथियार थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय सैनिकों की संख्या तुलना में काफी कम थी।

थोड़ी ही देर में बहस-मारपीट में बदल गई और चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया। यह ढलाव वाला क्षेत्र है। समझा जा रहा है कि इस दौरान कुछ भारतीय सैनिक चीन के क्षेत्र में भी फिसलकर चले गए होंगे।

भारत और चीन के सैनिकों की हिंसक झड़प में दोनों देशों को नुकसान हुआ है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा। लेकिन भारत ने एक बार फिर उदारता दिखाते हुए एकतरफा कार्रवाई से बचने, संवाद प्रक्रिया तेज करने की रणनीति पर आगे बढऩे का मन बनाया है।

सेना के कमांडर भी हालात पर पूरी नजर रख रहे हैं और सीमा पर हुई हिंसक झड़प, सेना के टैक्टिकल मूव आदि की सैन्य कमांडर के स्तर पर समीक्षा की जा रही है। इसके अलावा तीनों सेनाएं अपने स्तर से स्थिति का आंकलन कर रही हैं।

समझा जा रहा है कि दोनों देशों के दूतावासों की भूमिका बढ़ गई है। संयुक्त सचिव (पूर्व) एशिया नवीन श्रीवास्तव अपने समकक्ष से बात कर सकते हैं। दोनों देशों के बीच में कूटनीतिक प्रयासों के जरिए सैन्य कूटनीति और संवाद का रास्ता अपनाया जा सकता है।

22 जून को चीन, भारत और रूस के विदेश मंत्रियों के बीच में वर्चुअल मीटिंग होनी है। यह चर्चा आरआईसी फोरम के तहत होगी। समझा जा रहा है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री इस दौरान क्षेत्रीय मुद्दे को लेकर द्विपक्षीय चर्चा भी कर सकते हैं।

भारत कुछ सैनिकों के चीन के कब्जे में होने की बात कह रहे हैं। हालांकि इस खबर की पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन आ रही सूचना के मुताबिक भारत के कुछ संख्या में सैनिकों के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है।

हिंसक झड़प की घटना सोमवार की रात में हुई थी। मंगलवार को इस दिशा में काफी प्रयास हुए हैं। समझा जा रहा है कि गायब सैनिकों के बारे में प्रयास तेज हो सकते हैं।

समझा जा रहा है कि भारत के कुछ सैनिक अभी भी चीन की सेना के कब्जे में हैं। इसलिए पहला प्रयास अपने सैनिकों की संख्या को ठीक करना भी होगा। दूसरा भारत के सामने एक चुनौती है।

चीन की तुलना में भारत का क्षेत्र ज्यादा ऊंचाई पर और दुरूह भी है। उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल तक की सीमा पर चीन की तरफ के सैन्य आधारभूत संसाधन हमारी तुलना में काफी अच्छे हैं।

पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि पेचीदगियां बढ़ गई हैं। पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि स्थानीय सैन्य कमांडर के स्तर से प्रयास होगा ही, इसके साथ-साथ दोनों देशों के राजदूत के बीच में संवाद बढ़ेगा।

रिश्तों की विश्वसनीयता में भी बड़ा मोड़ आ गया है। इसे बनाए रखने की चुनौती आ गई है। इस तरह से लग रहा है कि अब सैन्य कूटनीति और राजनयिक प्रयासों में तेजी आएगी। पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि यह मुश्किल घड़ी तो है।

 

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