पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि ‘भारत माता की जय’ के नारे का दुरुपयोग कर देश में भावनात्मक और उग्रवाद का माहौल बना कर अपने ही नागरिकों को देश से अलग किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जवाहर लाल नेहरू को वो लोग बदनाम कर रहे हैं जिनके पास उनके इतिहास को पढ़ने का सब्र नहीं है.
मनमोहन सिंह ने वर्तमान हालात पर निराशा जताते हुए कहा, यह दुभार्ग्यपूर्ण है कि लोगों का एक समूह जिसे या तो इतिहास पढ़ने का धैर्य नहीं है अथवा वे पूवार्ग्रह से ग्रसित होने की वजह से पंडित जवाहर लाल नेहरू को गलत परिप्रेक्ष्य में दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इतिहास में गलत और फर्जी चीजों को नकारने और उन्हें सही परिपेक्ष्य में रखने की क्षमता है.
दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान ‘भारत माता कौन है’ किताब का विमोचन कर रहे थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इस किताब का विमोचन उस दौर में हो रहा है जब संचार तंत्र का गलत इस्तेमाल कर लोगों की भावनाओं को भड़काया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि नेहरू ने अस्थिरता के दौर में देश का नेतृत्व किया था और उनके नेतृत्व में ही देश ने सामाजिक और राजनीतिक मतभिन्नता को अपना कर लोकतंत्र का रास्ता अपनाया. अपने युग के महान दृष्टा पंडित नेहरू को भारतीय धरोहर पर गर्व था और उसी विरासत से सूत्र लेकर उन्होंने आधुनिक भारत की आधारशिला रखी.
मनमोहन सिंह ने नेहरू का जिक्र करते हुए कहा, उन्होंने साल 1936 में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पूछा था, ‘भारत माता कौन है?, किसकी जीत आप चाहते हैं?’ पहाड़ों व नदियों, जंगलों और खेतों सभी के लिए प्यारे हैं, लेकिन जिन्हें वास्तव में गिना जाता है, वे देश के लोग हैं, जो कि विशाल भूमि में हर तरफ फैले हुए हैं.’
नेहरू ने खुले तौर पर कहा था कि भारत माता हमारे देश के लोग हैं और भारत माता की जय इस देश में रहने वाले करोड़ों नागरिकों की जय है. उन्होंने कहा कि इस किताब का विमोचन सही समय पर हुआ है. जब लोगों को पंडित नेहरू के काम को समझने की असल जरूरत है.
पुरुषोत्तम अग्रवाल और राधा कृष्ण द्वारा लिखित ‘हू इज भारत माता’ नामक इस पुस्तक में नेहरू की क्लासिक पुस्तकें: ऑटोबायोग्राफी, ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री और डिस्कवरी ऑफ इंडिया, आजादी से पहले और बाद के उनके भाषण, लेख, पत्र तथा कुछ सनसनीखेज कुछ साक्षात्कार हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ऐसे समय में इस पुस्तक की खास प्रासंगिकता है जब राष्ट्रवाद और भारत माता की जय के नारे का भारत के उग्रवादी एवं विशुद्ध भावनात्मक विचार के निर्माण के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है, एक ऐसा विचार जिसमें लाखों बाशिंदे और नागरिक शामिल नहीं हैं.’