नई दिल्ली, चीनी सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की विवाद समाधान समिति के फैसले के खिलाफ भारत ने अपील की है। भारत ने डब्ल्यूटीओ के अपीलीय निकाय के समक्ष यह अपील की है। यह निकाय ऐसे व्यापार विवादों का अंतिम रूप समाधान करने वाला प्राधिकरण है। भारत ने कहा है कि डब्ल्यूटीओ की विवाद समाधान समिति ने गन्ना उत्पादकों और निर्यात को समर्थन की घरेलू योजनाओं को लेकर अपने फैसले में कई ‘गलत’ निष्कर्ष निकाले हैं और यह पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। कुछ दिनों पहले समिति ने अपने फैसले में कहा था कि भारत के चीनी और गन्ने के लिए घरेलू समर्थन उपाय वैश्विक व्यापार नियमों के अनुकूल नहीं हैं।
समिति ने पिछले साल 14 दिसंबर को अपने फैसले में कहा था कि भारत को उत्पादन सहायता, बफर स्टाक और विपणन और परिवहन योजनाओं के तहत कथित रूप से प्रतिबंधित सब्सिडी को वापस लेना चाहिए। समिति ने भारत से कहा था कि उसे इस रिपोर्ट के 120 दिन के अंदर प्रतिबंधित सब्सिडी को वापस लेना होगा। ब्राजील, आस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला की शिकायत पर समिति ने यह व्यवस्था दी थी। इन देशों का कहना था कि भारत के गन्ना उत्पादकों और चीनी के साथ निर्यात सब्सिडी जैसे उपाय वैश्विक व्यापार नियमों के अनुकूल नहीं हैं। साथ ही ये डब्ल्यूटीओ के कृषि पर करार प्रविधानों, सब्सिडी और प्रतिपूर्ति उपायों, व्यापार और शुल्कों पर सामान्य समझौतों (गैट) के अनुरूप भी नहीं हैं।
अगर अपीलीय निकाय का फैसला भी खिलाफ जाता है तो सरकार को इन उपायों को नए सिरे से डिजाइन करना होगा। हालांकि डब्ल्यूटीओ में जिस तरह से सब्सिडी की गणना की जाती है, उसके खिलाफ भारत को कड़ा संघर्ष करना चाहिए क्योंकि वे गलत हैं।
बिश्वजीत धर, प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
ब्राजील सबसे बड़ा उत्पादकब्राजील दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और निर्यातक है। ब्राजील के बाद चीनी उत्पादन में भारत का नंबर आता है। दिसंबर, 2020 में सरकार ने विपणन वर्ष 2020-21 के लिए 60 लाख टन चीनी निर्यात के लिए चीनी मिलों को 3,500 करोड़ रुपये की सब्सिडी की मंजूरी दी थी।
2019-20 में 10448 रुपये प्रति टन की सब्सिडी
विपणन वर्ष 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए सरकार ने एकमुश्त 10,448 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दी थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मिलों ने 2019-20 के सत्र के लिए 60 लाख टन के अनिवार्य कोटा पर 57 लाख टन चीनी का निर्यात किया था। व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अपीलीय निकाय भी भारत के समर्थन उपायों के खिलाफ फैसला सुनाता है तो देश को इसका अनुपालन करना होगा और समर्थन उपायों में उचित बदलाव करने होंगे।