भाई और कप्तान तीनों है, रवि शास्त्री बोले- विराट मेरा दोस्त…

भारतीय कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री के बीच अच्छा तालमेल है। कुछ लोगों को यह रास आता है तो कुछ इसका इस्तेमाल एक खास एजेंडे के लिए करते हैं।

रवि शास्त्री अपनी और विराट की जोड़ी को ना सिर्फ एक-कोच कप्तान की जोड़ी मानते हैं बल्कि उनके लिए वह एक बड़े और छोटे भाई की भी जोड़ी है। साथ ही वह विराट को अपना दोस्त भी मानते हैं। विश्व कप में भारत को चैंपियन बनाने के लिए इंग्लैंड रवाना होने से पहले अभिषेक त्रिपाठी ने भारतीय टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री से विस्तार से बातचीत की।

आप अपनी और विराट की जोड़ी को कैसे देखते हैं? क्या यह एक कोच-कप्तान की, या बड़े भाई-छोटे भाई या फिर दो दोस्तों की जोड़ी है-  मेरा जवाब होगा हमारी जोड़ी इन तीनों का मिश्रण है। हमारे बीच में एक चीज, जो सबसे अच्छी और एक जैसी है, वह है हम दोनों की सोच। हम दोनों की आक्रामक सोच है। पिछले पांच साल से मैं टीम इंडिया के साथ हूं। पहले एमएस धौनी कप्तान थे और अब विराट कप्तान हैं। ऐसे में समय के साथ इंसान काफी कुछ सीख लेता है। वह भी सीख लेता है और हम भी सीख लेते हैं।

कप्तान विराट की ऐसी कौन सी आदत है जो आपको सबसे ज्यादा पसंद आती है-  कप्तान उदाहरण पेश करके टीम की अगुआई करता है। उसके काम करने का तरीका देखो, उसकी फिटनेस देखो, उसके खेलने का तरीका देखो। वह किसी भी मुश्किल हालात में शॉर्टकट लेना नहीं चाहता है। वह अंतिम खिलाड़ी होगा जो बहाना बनाएगा। उसने अगर खराब शॉट खेला है तो वह टीम के सामने साफ मानेगा कि उसने खराब शॉट खेला है। ऐसी चीजों से फिर दूसरे युवा खिलाडि़यों को भी काफी कुछ सीखने को मिलता है।

पिछले कुछ विदेशी दौरों पर हमने देखा है कि कुछ गलत फैसलों की वजह से टीम को शिकस्त झेलनी पड़ी है या फिर वह टीम हित में सही साबित नहीं हुए। इसे कैसे देखते हैं –  बिलकुल ऐसा हुआ है और हम इसे मानते हैं और इससे हम सीखते हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज हम 1-2 से हारे। वह हम 2-1 से आराम से जीत सकते थे। केपटाउन में हम एक नजदीकी मुकाबला हारे। केवल 205 रन जीतने के लिए बनाने थे और अगर वह मैच जीत जाते तो फिर सीरीज में 2-1 से हमारे पक्ष में हो सकती थी। इंग्लैंड में हम टेस्ट सीरीज 4-1 से हारे लेकिन वह स्कोर लाइन सही नहीं है क्योंकि हम काफा अच्छी क्रिकेट खेले। मेरे ख्याल में हमने वहां जो पहला टेस्ट मैच गंवाया वह हमारे लिए सही नहीं हुआ। वह मैच हमें नहीं हारना चाहिए था। इंग्लैंड का स्कोर दूसरी पारी में 80 रनों पर सात विकेट था। अगर हम सही समय पर विकेट लेते तो हमें 100 रनों से ज्यादा का लक्ष्य नहीं मिलता। हालांकि मैं कहूंगा कि जब हम दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में सीरीज के बाद ऑस्ट्रेलिया पहुंचे तो वहां हमने अपनी गलतियां सुधार ली। उस सीरीज में जो भी मैच के अहम पल थे, हमने उस पर विजय पाई।

तो क्या उन हारों से सबक लेते हुए आप लोगों ने विश्व कप में मौसम, पिच को सही ढंग से पढ़ने और सही अंतिम एकादश चुनने का कोई फुल प्रूफ प्लान बनाया है-  हम वर्तमान में जीते हैं। वहां ही पता चलेगा कि परिस्थितियां कैसी हैं, पिच कैसी हैं। मौसम, बादल और अन्य चीजें कैसी हैं क्योंकि इंग्लैंड एक ऐसा देश है जहां यह सब बहुत मायने रखता हैं। उन्हीं के हिसाब से टीम चयन से लेकर खिलाडि़यों के बल्लेबाजी क्रम तक में बदलाव किया जा सकता है। टीम में तीन तेज गेंदबाज रखने हैं और एक स्पिनर खिलाना है या फिर कुछ और बदलाव करने हैं, यह सब ओवरहेड परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। जहां तक दबाव की बात है तो मैं तो कहूंगा कि लड़कों को विश्व कप का लुत्फ उठाना चाहिए। मैं उल्टा सोचता हूं। मेरा मानना है कि अगर मैं एक खिलाड़ी के तौर पर जब खेलता हूं तो करोड़ों लोग आपको देखते हैं। ऐसे में बिंदास जाकर खेलो और इसका लुत्फ उठाओ।

1983 विश्व कप में एक खिलाड़ी के तौर पर लॉ‌र्ड्स की बालकनी में ट्रॉफी उठाना और अब एक कोच के तौर पर वैसी ही ख्वाहिश रखना। ये दोनों कैसे और कितना अहमियत रखते हैं-  दोनों अपने आप में बहुत खास है। जब आप खेलते हैं तो टीम का दबाव होता है और जब आप कोच होते हैं तो पूरी टीम का दबाव आप पर होता है। कोच के तौर पर ज्यादा दबाव इसलिए होता है क्योंकि एक बार जब खिलाड़ी मैदान पर चले गए तो आपके नियंत्रण में कुछ नहीं होता। जब खेलते थे तो या तो गेंद या फिर बल्ला हाथ में होता था। ऐसे में मेरा मानना है कि कोच के तौर पर यह अलग स्तर का दबाव है। मेरा मानना है कि बतौर कोच सबसे ज्यादा दबाव होता है।

लॉ‌र्ड्स की बालकनी में विश्व कप की ट्रॉफी के साथ फोटो खिंचवाना और बाकी जगह फोटो खिंचवाना कितना अलग होता है –  मेरा मानना है कि लॉ‌र्ड्स ही नहीं विश्व कप का फाइनल किसी भी मैदान में काफी अहम होता है। पिछली बार मेलबर्न में विश्व कप फाइनल था। तो जो टीम मेलबर्न में विजेता बनी उसे याद रखेगी। वैसे ही लॉ‌र्ड्स में कोई टीम जीतेगी तो उसे याद रखेगी।

 आपने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीत के बाद कहा था कि वह जीत 1983 विश्व कप से बड़ी जीत है। अगर आपकी टीम 2019 विश्व कप जीतती है तब भी आप उस बात पर कायम रहेंगे-  देखिए यह मेरी सोच है और मैं उस पर कायम रहता हूं। मैं एक ही बंदा था जो तीनों जगह पर था। जब हम विश्व कप जीते और जब हम विश्व चैंपियनशिप जीते और जब हम टेस्ट सीरीज जीते तो मैं ड्रेसिंग रूम में था। मैं ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीत को खास इसलिए मानता हूं क्योंकि हम वहां नंबर एक टीम की हैसियत से गए थे। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया को 70 वर्षो से भी ज्यादा समय के बाद हराना बहुत बड़ी बात है। मेरे लिए वह एक बड़ी जीत इसलिए थी क्योंकि टेस्ट क्रिकेट काफी मुश्किल प्रारूप है। वनडे क्रिकेट की बात करेंगे तो सबसे बड़ा टूर्नामेंट है विश्व कप। अगर मुझसे कोई कहता कि अगर आप विश्व कप नहीं जीत पाने से नाराज थे तो मैं पक्का कहूंगा कि हां मैं नाराज होता। मेरे करियर में अगर हम ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतते तो उसे मैं बहुत बड़ा मानता।

टीम के आलोचकों पर आपकी क्या राय है? क्या आप लोगों को आलोचना पसंद नहीं है-  इसके बारे में हम टीम प्रबंधन और खिलाडि़यों के साथ बात करते हैं। हर इंसान के पास अपनी राय होती है और सभी को अपनी राय रखने का अधिकार है लेकिन हमारी टीम के लिए क्या अच्छा है वह हमें सोच के करना चाहिए। हमारे पास काफी अच्छे अनुभवी खिलाड़ी हैं, सहयोगी स्टाफ है तो इनकी क्षमताओं पर तो सभी को भरोसा होना चाहिए।

 क्या आपको लगता है कि कभी-कभी कुछ लोग जानबूझ कर एक खास एजेंडे के तहत आलोचना करते हैं-  मैं 40 वर्षों से खेल से जुड़ा हुआ हूं। सभी ने मुझे देखा होगा कि मैं कैसा खेला हूं, कैसा बोलता हूं और कैसी कमेंट्री करता हूं। अगर मैं एजेंडा चलाने वालों की चिंता करने बैठ गया तो फिर तो कुछ होने वाला ही नहीं है। अपना काम करो और चुपचाप जाओ। एजेंडे वाले एजेंडा चलाते रहेंगे तो ऐसे में हमको उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। वह अपना काम करें हम अपना काम करेंगे।

 कप्तान कपिल देव के साथ आप खेल चुके हैं, कप्तान एमएस धौनी के समय आप टीम डायरेक्टर थे? अब विराट कप्तान हैं। इन तीनों की कप्तानी को आप किस नजरिये से देखते हैं-  कपिल देव की बात करें तो उनके जैसा काबिलियत वाला क्रिकेटर मैंने आज तक नहीं देखा जो अच्छी बल्लेबाजी करे, गेंदबाजी करे और क्षेत्ररक्षण भी करे। वह अपने करियर में सर्वश्रेष्ठ थे। एमएस धौनी जैसा कंपोजर आज तक मैंने नहीं देखा। चाहे विश्व कप जीते, शून्य पर आउट हो जाए, 200 या 50 रन बनाए, उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका स्वभाव एक जैसा ही रहता है और यह मानने की बात है। विराट कोहली की बात करें तो वह सबसे ज्यादा जुनूनी है। मैदान पर जिस उत्साह और जुनून के साथ वह मैदान पर उतरता है वह देखते बनता है। मेरे हिसाब से ये तीनों पूर्ण रूप से चैंपियन क्रिकेटर हैं। धौनी और विराट तो अभी खेल रहे हैं लेकिन मैं पहले ही कहता हूं कि ये तीनों लीजेंड बन चुके हैं।

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