जब भी आप कहीं जाते होंगे तो कहीं न कहीं कचरा बीनने वाले लोग दिखाई देते होंगे, इन लोगों की हालत देखकर दया तो आती है लेकिन हम कुछ कर नहीं पाते. अब इन कचरा बीनने वाले लोगों को सम्मानित जीवन देने के लिए एक नई पहल शुरू की जा रही है जिसमें कचरा बीनने वालों को अच्छी आमदनी होगी.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली की मदद से एक संस्थान ने कचरा बीनने वाले लोगों (रैग-पिकर) को प्रशिक्षण देने की एक विशेष पहल शुरू की है, जिसके तहत उन्हें कचरा बीनने में मिलने वाली वस्तुओं की बेहतर कीमत मिलेगी.
आईआईटी-दिल्ली के मौलिक विचार की उपज इंडियन पलूशन कंट्रोल एसोसिएशन (आईपीसीए) ने बयान में कहा कि उत्तर भारत में मुख्य रूप से दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव के 2,000 रैग-पिकर को अब कचरा प्रबंधन परियोजना में शामिल किया गया है.
आईपीसीए ने कहा, “महत्वपूर्ण सेवा के बावजूद भारत में रैग-पिकर को जीवन-निर्वाह के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. उन्हें हमेशा हानिकारक पदार्थो का खतरा बना रहता है, लेकिन उनको पारिश्रमिक कम मिलता है और उनके लिए मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है.”
कचरे को अलग करने के बाद पुनर्चक्रण यानी दोबारा उपयोग में लाने वाली वस्तुएं कबाड़ीवाले को बेजी जाती हैं, जबकि गीला कचरा मवेशियों के चारे के रूप में उपयोग होता है, जोकि बहुत कम कीमतों पर बिकता है. आईपीसीए ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या रिश्वत और ठेकेदारी की व्यवस्था को लेकर है. महानगर निगम द्वारा कचरा संग्रह किए जाने की व्यवस्था शुरू होने के बाद उनके लिए कचरा मिलना चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है.
आईपीसीए ने कहा, “इसलिए अब वे कचरे से कीमती चीजें संग्रह करने के लिए एमसीडी अधिकारियों को कचरे की कीमत चुकाना पड़ेगा. यह कीमत उनको तब भी चुकानी पड़ेगी, जब वे कचरे के खुले डब्बे से कचरा संग्रह करेंगे, क्योंकि एमसीडी अधिकारी कमीशन मांगते हैं.”
आईपीसी के अध्ययन के अनुसार, 200 घरों से कचरा संग्रह करने से 20,000-25,000 रुपए मिलेंगे, जोकि एक अकुशल मजदूर के लिए काफी हैं. आईपीसीए के संस्थापक व निदेशक आशीश जैन ने कहा, “हम उनको बेहतर कीमत दिलाने की दिशा में काम कर रहे हैं. साथ ही उनके स्वास्थ्य को होने वाले खतरे से बचने में मदद करने पर विचार किया जा रहा है.”