केंद्रीय कैबिनेट और कर्नाटक के बाद अब बिहार सरकार ने भी ‘उच्चस्तरीय’ बैठकों में मोबाइल फोन ले जाने पर रोक लगा दी है। गुरुवार को सामान्य प्रशासन विभाग के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने एक आदेश जारी करते हुए राज्य के सभी प्रमुख सचिवों और पुलिस अधिकारियों से बैठकों में भाग लेने के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से बचने के लिए कहा।
आदेश के अनुसार, सिर्फ अधिकारी ही नहीं, बल्कि उच्चस्तरीय बैठकों में मुख्यमंत्री, विभागीय मंत्रियों, मुख्य सचिव, विकास आयुक्तों के भी मोबाइल फोन ले जाने को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, सरकारी नीतियों पर महत्वपूर्ण चर्चाओं के बीच मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कई मौकों पर लिया गया था, क्योंकि आम तौर पर यह देखा गया है कि कोई भी अधिकारी या नेता बैठकों में मोबाइल फोन लेकर चले जाते हैं और बैठक के दौरान वो बज उठता है, जिससे बाकियों का ध्यान मुख्य मुद्दे से विचलित हो जाता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि कुछ अधिकारी बैठक के दौरान व्हाट्सएप पर संदेश भेज रहे होते हैं। साल 2017 में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था जब राज्य के पुलिस मुख्यालय में एक समारोह के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व डीजीपी पीके ठाकुर पुलिस अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे और उधर अधिकारी मोबाइल में गेम खेलने और इंटरनेट चलाने में व्यस्त थे। अधिकारियों की इन्हीं लापरवाहियों को देखते हुए मोबाइल फोन को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
साल 2016 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी साइबर सुरक्षा के खतरों को देखते हुए कैबिनेट की बैठकों में मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंध इस उद्देश्य से लगाया गया था कि कैबिनेट के फैसलों और महत्वपूर्ण नीतियां बनाने के मामलों के बारे में कोई भी संवेदनशील जानकारी बाहर लीक न हो।
इसके अलावा इसी साल जुलाई में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने भी सभी अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को निर्देश दिया था कि वे बैठकों के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें, ताकि महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के दौरान किसी का भी ध्यान विचलित न हो।