बिहार के अस्पताल से दुर्दशा की लगातार तस्वीरें आ रही हैं. ये तस्वीरें सूबे के किसी दूरदराज के कस्बे या गांव से नहीं, बल्कि राजधानी पटना के प्रतिष्ठित और कोविड-19 इलाज के लिए बनाए गए नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) की है. बुधवार को यहां एक मरीज ने अस्पताल के बाहर ही दम तोड़ दिया क्योंकि आरोप है कि करीब तीन घंटे तक पर्ची बनवाने के लिए ही परिजनों को अस्पताल के चक्कर कटवाया जाता रहा.
एनएमसीएच की ये बदहाली तब है जब मीडिया लगातार यहां की बदइंतजामी की पोल खोल रहा है. जाहिर है यहां के सिस्टम में इतनी बदइंतजामी घुस चुकी है कि इसका कोई उपचार नजर नहीं आता.
एक तरफ मरीज दम तोड़ रहे हैं दूसरी तरफ बुधवार को एनएमसीएच के चतुर्थ श्रेणी के स्टाफ हड़ताल पर चले गए. अपने एक साथी से मारपीट की घटना से खफा होकर अस्पताल के ये स्टाफ हड़ताल पर चले गए.
बिहार में एक तरफ वायरस का प्रहार है तो दूसरी तरफ सिस्टम बेहाल दिख रहा है. मीडिया ने शनिवार को पहली बार पटना के कोविड-19 अस्पताल एनएमसीएच की बदहाली की पोल खोली थी. इसके बाद भी एनएमसीएच में कोई सुधार नहीं हुआ.
सोमवार रात बदहाली का वही मंजर दिखता रहा. दो दिन बाद ‘आजतक’ की खबर से बिहार सरकार में हड़कंप मच गया. एनएमसीएच पटना के अधीक्षक निर्मल कुमार सिन्हा का तबादला कर दिया गया लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या अफसर के तबादले से बदलेंगे हालात?
दूसरी ओर, कोरोना के बीच पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए क्योंकि उनके पास न पीपीई किट्स थी, न सैनेटाइजर और न मास्क. इस वक्त तक बिहार में कोरोना के 28,952 मामले हो चुके हैं जबकि 217 लोगों की मौत हो चुकी है.
पिछले 24 घंटे में ही 1206 नए मामले आ गए हैं. 25 मार्च को जब सबसे पहले लॉकडाउन शुरू हुआ तो बिहार में कोरोना के कुल मामले चार आए थे और मौत एक.
टेस्टिंग की बात करें तो बिहार में प्रति दस लाख लोगों पर टेस्ट का आंकड़ा तीन हजार है जबकि दिल्ली जैसे राज्य में 45 हजार है.
केंद्र की टीम जब बिहार के हालात का दौरा कर लौटी तो उसने इंतजामों की पोल खोल दी. केंद्रीय टीम का कहना है कि अभी बहुत कुछ करना है. कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए बिहार में 16 जुलाई से लॉकडाउन चल रहा है.