धौनी मेरठ की एक कंपनी द्वारा निर्मित क्रिकेट उत्पादों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने विश्व कप से पहले मेरठ की एक स्पोर्ट्स कंपनी से विशेष तौर पर हरे रंग के साथ सेना का बैज लगाकर दस्ताने बनवाए थे। भारतीय विकेटकी पर महेंद्र सिंह धौनी के बलिदान बैज वाले विकेटकीपिंग के दस्ताने कहीं और नहीं बल्कि मेरठ में बने हैं।
बल्ला भी यहीं बना- कंपनी ने इस तरह के और भी ग्लव्स बनाए हैं। मेरठ की स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री से विदेशों में खेल सामग्री का निर्यात होता है। धौनी का बल्ला भी मेरठ की एक बड़ी कंपनी ने बनाया है।
प्रशंसकों का साथ- बीसीसीआई का धौनी को समर्थन करोड़ों भारतीयों की एकता को दिखाता है। यह चिन्ह किसी भी तरह से राजनीतिक, धार्मिक और जातीय नहीं है। धौनी के दस्तानों की बजाय आईसीसी को टूर्नामेंट में अंपायरिंग के स्तर को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए।
क्या है आईसीसी का नियम- आईसीसी नियम के मुताबिक खिलाड़ियों के कपड़ों या अन्य वस्तुओं पर अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान राजनीति, धर्म या नस्लभेद आदि का संदेश अंकित नहीं होना चाहिए। इससे पहले, आईसीसी ने बीसीसीआई से कहा था कि वह धौनी के दस्तानों पर से यह चिह्न हटवाए।
खेल मंत्री का हस्तक्षेप- आईसीसी की आपत्ति के बाद यह मामला भारत में इतना तूल पकड़ गया कि केंद्रीय खेल मंत्री किरन रिजिजू को भी हस्तक्षेप करना पड़ गया। उन्होंने बीसीसीआई से इस मामले में उचित कदम उठाने की अपील की। उन्होंने कहा, सरकार खेल निकायों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है, लेकिन जब मुद्दा देश की भावनाओं से जुड़ा होता है, तो राष्ट्र के हित को ध्यान में रखना होता है। मैं बीसीसीआई से आग्रह करता हूं कि वह इस मामले में उचित क़दम उठाए।
पाक के मंत्री ने आलोचना की तो भारतीयों ने घेरा- पाक के विज्ञान मंत्री फवाद चौधरी के बयान की सोशल मीडिया किरकिरी हुई। उन्होंने लिखा था, धौनी इंग्लैंड में क्रिकेट खेलने गए हैं ना कि महाभारत की लड़ाई लड़ने। भारतीय मीडिया में एक मूर्खतापूर्ण बहस चल रही है। मीडिया का एक वर्ग युद्ध से इतना प्रभावित है कि उन्हें सीरिया, अफगानिस्तान या रवांडा में भाड़े के सैनिकों के रूप में भेज देना चाहिए। इसके बाद भारतीय प्रशंसकों ने दिनभर उन्हें निशाने पर लिए रखा।