शोधकर्ताओं ने बताया, ‘अगर हम यह धारणा बना लेते हैं कि हमारे पास किसी काम को करने के लिए सीमित संसाधन है, तो हम अक्सर उस काम को उतने पर ही करने के बाद स्वयं को मानसिक रूप से थका हुआ पाते हैं। वहीं ऐसे लोगों की तुलना में जो सक्रिय रूप से अपने दिमाग का अधिक इस्तेमाल करते हैं जो अपनी इच्छा शक्ति को एक असीमित और व्यापक संसाधन के रूप में देखते हैं।’