फिलिस्तीनियों पर इजरायल के हमले के खिलाफ इस्लामिक देशों के सबसे बड़े संगठन की बैठक रविवार को बुलाई गई. इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) में कुल 57 देश हैं. इस आपात बैठक में इजरायल की कड़ी आलोचना की गई और गाजा में तुरंत हमले रोकने की मांग की गई. हालांकि, इजरायल को लेकर इस्लामिक देशों की प्रतिक्रिया अलग-अलग थी और इसे लेकर उनके बीच के मतभेद बैठक में भी खुलकर सामने आए.
पिछले साल, संयुक्त अरब अमीरात ने इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य किए थे और उसके बाद बहरीन, मोरक्को और सूडान ने भी यूएई का अनुसरण किया था. वहीं, मिस्त्र और जॉर्डन ने भी इजरायल के साथ शांति समझौते किए थे. इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में कई देशों के प्रतिनिधियों ने इजरायल से दोस्ती करने के कदम को गलत ठहराया.
ओआईसी में फिलिस्तीनियों के लिए अलग से राष्ट्र बनाने और पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी बनाने की मांग एक बार फिर दोहराई गई. इससे पहले, सऊदी अरब ने अल-अक्सा मस्जिद में इजरायली सुरक्षा बलों की हिंसा और पूर्वी यरुशलम से फिलिस्तीनियों को उनके घरों से बेदखल करने की योजना की कड़ी निंदा की थी. सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहन अल सउद ने ओआईसी बैठक में कहा कि वैश्विक समुदाय को दो राष्ट्र के सिद्धांत के आधार पर शांति समझौता करने और हिंसा रोकने के प्रयास करने चाहिए.
इजरायल के खिलाफ पाकिस्तान और तुर्की सबसे आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं. मलेशिया, इंडोनेशिया और ब्रुनेई ने भी रविवार को अलग से बयान जारी किया और संयुक्त राष्ट्र महासभा की आपात बैठक बुलाने की मांग की. हालांकि, इजरायल से रिश्ते बहाल करने वाले यूएई का रुख उतना कड़ा नहीं था. यूएई ने अपने बयान में पिछले साल अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में हुए अब्राहम समझौते का हवाला देते हुए इजरायल से शांति बहाली और संघर्षविराम की अपील की.
ओआईसी की बैठक में सदस्य देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए लेकिन यूएई की तरफ से विदेश मंत्री की जगह एक जूनियर मंत्री को भेजा गया था. यूएई की अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंत्री रईम अल-हाशिमी ने कहा, मध्य-पूर्व को अस्थिरता से बचाने के लिए तत्काल तनाव घटाने और संयम बरतने की आवश्यकता है.
इजरायल के खिलाफ बुलाई गई इस बैठक में सदस्य देश एक-दूसरे पर ही उंगली उठाते नजर आए. ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने कहा, आज फिलिस्तीनियों बच्चों का नरसंहार इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य करने का ही नतीजा है. इजरायल की आपराधिक चरित्र की और नरसंहार करने वाली हुकूमत ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि उसके प्रति दोस्ताना रुख उसके अत्याचारों को और बढ़ाएगा.