प्रदोष व्रत में शिव पूजा का बड़ा विधान है। इस दिन जो कोई भी भक्त शास्त्रोक्त विधि -विधान से महादेव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रदोष का व्रत महीने में दो बार आता है और दोनों ही प्रदोष में व्रत और शिव पूजा का बहुत महत्व है। प्रदोष के दिन संध्याकाल में शिव उपासना करने से शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। फरवरी महीने की पहली प्रदोष 7 फरवरी शुक्रवार को है।
प्रदोष की कथा का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है। प्राचीन समय में एक विधवा ब्राह्मण स्त्री अपने पुत्र के साथ भिक्षाटन के लिए सुबह घर से निकलती और शाम को अपने घर लौट आती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर अपने घर आ रही थी उस समय राह में नदी के तट पर उसको एक सुंदर बालक बेहद खराब हालत में खड़ा हुआ दिखाई दिया।
नदी के किनारे अनाथ और अकेला खड़ा बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। दुश्मनों ने उसके पिता के मार कर उसके राज्य को हथिया लिया था और उसकी माता की भी राज छूटने पर दुर्दशा की वजह से अकाल मृत्यु हो चुकी थी। गरीब ब्राह्मण स्त्री ने उस बालक को अपने साथ उसको घर ले आई और उसका अच्छी तरह से पालन-पोषण करने लगी।
कुछ समय व्यतीत होने के बाद ब्राह्मण स्त्री दोनों बच्चों को लेकर मंदिर में देव दर्शन के लिए गई। मंदिर में उसकी मुलाकात महर्षि शाण्डिल्य से हुई। महर्षि शाण्डिल्य ने ब्राह्मण स्त्री को बालक के बारे में बताया और कहा की, जो बालक उसको नदी किनारे मिला है वह विदर्भ राज्य का राजकुमार है विदर्भ के राजा युद्ध करते वक्त दुश्मन के हाथों मारे जा चुके हैं और बच्चे की माता को भी खराब अवस्था में घूमते हुए जंगली जानवर मारकर खा चुका है।
ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष का व्रत बताया और उसको करने को कहा। ऋषि आज्ञा का पालन करते हुए ब्राह्मणी के साथ दोनों बच्चों ने भी प्रदोष व्रत को विधि-विधान से करना शुरू किया।
एक दिन दोनों बच्चे वन में विचरण कर रहे थे तभी अचानक उनकी भेंट कुछ गंधर्व कन्याओं से हुई। ब्राह्मण बालक तो उसी समय घर वापस आ गया, लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बातचीत करने लगा और उसको गंधर्व कन्या से प्रेम हो गया। गंधर्व कन्या ने राजकुमार धर्मगुप्त को विवाह के लिए अपने पिता से मिलने के लिए आमंत्रित किया।
दूसरे दिन राजकुमार जब फिर से गंधर्व कन्या से मुलाकात करने के लिए आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने उसको बताया कि वह विदर्भ राजवंश से संबंधित है। भगवान भोलेनाथ की कृपा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त के साथ कर दिया।
विवाह के बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की मदद से विदर्भ राष्ट्र पर हमला बोल दिया और अपना खोया हुआ राज्य वापस ले लिया। यह सब ब्राह्मण स्त्री और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। विवाह के बाद राजकुमार, राजा बन गया और महल में वह ब्राह्मणी और उसके पुत्र को आदर के साथ रहने के लिए ले आया। ब्राह्मण स्त्री और उसके पुत्र के सभी दुख, दर्द और गरीबी दूर हो गई और वे सुख से अपना समय व्यतीत करने लगे। स्कंदपुराण के अनुसार, जो उपासक प्रदोष के दिन शिवपूजा के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसको सौ जन्मों तक कभी भी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता है।