यूपी की मुख्यमंत्री रहते बनी मूर्तियों के मामले में मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. मायावती ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि उनकी मूर्तियां लगे, ये जनभावना थी.BSP संस्थापक कांशीराम की इच्छा थी,दलित आंदोलन में उनके योगदान के चलते मूर्तियां लगवाई गई थी.मायावती ने अपने जवाब में ये भी कहा है कि यह पैसा शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए या अस्पताल पर यह एक बहस का सवाल है और इसे कोर्ट द्वारा तय नहीं किया जा सकता है. लोगों को प्रेरणा दिलाने के लिए स्मारक बनाए गए थे. इन स्मारकों में हाथियों की मूर्तियां केवल वास्तुशिल्प की बनावट मात्र हैं और ये बीएसपी के पार्टी प्रतीक का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
दरअसल, याचिका में सरकारी खर्चे पर लगी मूर्तियों का खर्च मायावती से वसूलने की मांग है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रथम दृष्टया तो बीएसपी प्रमुख को मूर्तियों पर खर्च किया गया जनता का पैसा लौटाना होगा.उन्हें यह पैसा वापस लौटाना चाहिए’.याचिकाकर्ता रविकांत ने 2009 में दायर अपनी याचिका में दलील दी है कि सार्वजनिक धन का प्रयोग अपनी मूर्तियां बनवाने और राजनीतिक दल का प्रचार करने के लिए नहीं किया जा सकता.कोर्ट ने कहा था कि इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई में वक्त लगेगा,
इसलिए इसे अप्रैल को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है.इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को लेकर व्यक्त की गई चिंता को देखते हुए इस मामले में अनेक अंतरिम आदेश और निर्देश दिए थे. निर्वाचन आयोग को भी निर्देश दिए गए थे कि चुनाव के दौरान इन हाथियों को ढंका जाये. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि मायावती, जो उस समय प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं का महिमामंडन करने के इरादे से इन मूर्तियों के निर्माण पर 2008-09 के दौरान सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं.
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