आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर तेज पकड़ रहा है. बीजेपी द्वारा आरक्षण कार्ड खेलने के बाद से देश में विपक्षों के सुर बदल गए हैं. अब वह दुविधा में हैं कि सवर्ण आरक्षण का विरोध करने से जहां वोटर नाराज होंगे वहीं, इसका समर्थन करने से सत्तारूढ़ दल को फायदा होगा. बिहार में महागठबंधन के अंदर तो सवर्ण आरक्षण पर आरजेडी ने विरोध किया है तो वहीं दलित नेता जीतनराम मांझी ने 15 फीसदी आरक्षण देने की मांग कर दी थी. लेकिन अपनी इस मांग की वजह से आरजेडी से तालमेल में वह फंस गए हैं. वहीं, अब आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की बात कही है.
जीतनराम मांझी दलित आरक्षण को लेकर भी जोरदार आवाज उठाई थी. वहीं, सवर्णों में भी जब आरक्षण का मुद्दा उठा तो उन्होंने सवर्णों को आरक्षण देने की मांग की. अब केंद्र सरकार ने 10 फीसदी सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला किया तो मांझी ने 15 फीसदी आरक्षण की मांग करते हुए इसे लागू करने की बात कही.
वहीं, आरजेडी ने सवर्णों को दिए गए 10 फीसदी आरक्षण देने का विरोध किया है. आरजेडी के विरोध करने के बाद जीतनराम मांझी दुविधा में फंस गए हैं कि वह किस स्टैंड पर रहें. आरक्षण के मुद्दों पर अपने सहयोगी दल से अलग फैसला उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रही है.
मांझी ने कहा कि हमारे समाज के लोग जय भीम का नारा देते हैं. लेकिन हमलोग अंबेदकर और लोहिया के विचारों को नहीं अपनाते हैं. अंबेदकर और लोहिया ने भी कॉमन स्कूलिंग सिस्टम की वकालत की थी. लेकिन उनके विचार अबतक लागू नहीं हो सके. सरकार किसी की भी हो अगर कॉमन स्कूलिंग सिस्टम लागू हो जाता है तो समाज में जात पात के नाम पर होने वाला विवाद भी खत्म हो जाएंगे.
मांझी ने कहा कि हमारे युवाओं को अब जाति मुक्त समाज की परिकल्पना को साकार करना चाहिए. वहीं, उन्होंने केन्द्र सरकार से राष्ट्रीय युवा वर्ग आयोग बनाये जाने की भी वकालत की है.