हालांकि फिलहाल संकेत इसी बात के हैं कि पाक को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर निकाले जाने की सम्भवना धुंधली है. महज़ 6 महीने पहले की आकलन रिपोर्ट में 30 से बिंदुओं पर पाक की कार्रवाई का रिपोर्ट कार्ड अधिकतर जगह कमज़ोर ही था. ऐसे में एफएटीएफ पाक पर काली सूची में डाले जाने जैसी सख्त कार्रवाई से भले ही रियायत दे दे मगर ग्रे लिस्ट से निकलने से पहले आतंकी संगठनों के खिलाफ करवाई सुधारने और सख्त कदम उठाने की अपेक्षा करेगा.
एफएटीएफ के मुताबिक करीब 205 देशों के प्रतिनिधि और संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अन्य संगठनों के 800 से अधिक प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल होंगे. इस कड़ी में 19 फरवरी से 21 तारीख तक अहम प्लेनरी होगा. इसी दौरान पाकिस्तान की तरफ से आतंकवाद की आर्थिक रसद रोकने के लिए अब तक उठाए गए कदमों की सख्त समीक्षा होनी है. ध्यान रहे कि अक्टूबर 2019 को हुई बैठक के दौरान पाकिस्तान को कड़ी हिदायत के साथ छह महीने की मोहलत दी गई थी.
गौरतलब है कि पाकिस्तान को 2018 में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डाला गया था. इसने न केवल पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बनाया बल्कि दुनियाभर में उसकी आर्थिक साख को भी करार झटका दिया. इस कार्रवाई की आंच का ही असर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस बात की शिकायत कर चुके हैं कि भारत ने पाक को परेशान करने के लिए यह कार्रवाई कराई.
सूत्रों के मुताबिक एफएटीएफ की इस अहम बैठक से पहले भारतीय अधिकारियों का एक दल भी पेरिस पहुँच चुका है. इसमें विदेश मंत्रालय में काउन्टर टेररिज़्म मामलो के प्रभारी संयुक्त सचिव और कई खुफिया एजेंसियों के वरिष्ठ अफसर भी शामिल हैं जो पाकिस्तान के आतंकी कारनामों का कच्चा-चिट्ठा लेकर पहुंचे हैं. भारत की तरफ से एफएटीएफ सदस्यों के सामने यह रखने का प्रयास होगा कि पकिस्तान की तरफ से अभी तक उठाए गए कदम नाकाफी हैं.
एफएटीएफ की कार्रवाई और दबाव के कारण ही पाक को जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा जैसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के कदम उठाने पड़े. इतना ही नहीं चंद रोज़ पहले मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ दो मामलों में सुनाई गई सज़ा भी एफएटीएफ की कार्रवाई के बचने का ही पैंतरा माना जा रहा है.