परिवार ही हमारी ताकत कोरोना काल में पुरुष भी घरों के काम में हाथ बंटा रहे

कोविड-19 के कहर से पूरी दुनिया कराह रही है। इस वैश्विक महामारी से लाखों लोग काल के गाल में समाते जा रहे हैं। इस भीषण संकट के समय हमारे पास एकमात्र सुरक्षित स्थान हमारा परिवार ही है, जो हमारी ताकत है। यही एक ऐसी जगह है जहां रहकर हम मुश्किल वक्त में भी स्वयं को बचा सकते हैं।

जब लॉकडाउन ही मात्र विकल्प रह जाता है तो सबसे ज्यादा जिम्मेदारी परिवारों की ही बनती है, क्योंकि परिवार ही मानव समाज की पूर्णत: मौलिक एवं सार्वभौमिक इकाई है। कहा भी जाता है कि मनुष्य दुनिया में कहीं भी चला जाए उसके परिवार और संस्कार की जड़ें हमेशा उसके साथ रहती हैं।

परिवार के ही अंदर परस्पर प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, सेवा, दया, करुणा, त्याग और धार्मिक गुण जन्म लेते हैं। परिवार के ही अंदर सभी सदस्य अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बड़े से बड़ा त्याग करने से भी नहीं हिचकते हैं। ऐसे में आज परिवार का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।

आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण, उद्योगीकरण, नगरीकरण एवं आर्थिक स्वतंत्रता आदि के परिणामस्वरूप व्यक्तिवाद, स्वेच्छाचारिता, स्वार्थपरकता जिस तरह से परिवारों पर हावी होती चली जा रही थी उसमें कुछ परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। वर्षों बाद लोगों को इतने लंबे समय के लिए परिवार में रहने का मौका मिल रहा है। नौकरी, व्यवसाय, पढ़ाई, शिक्षा एवं काम की व्यस्तता के कारण जो लोग हमेशा शिकायत करते थे कि उन्हें अपने परिवार में रहने का मौका नहीं मिल पाता है, आज वे लोग खुश हैं।

घरों में पुरुष भी काम में हाथ बंटा रहे हैं। बच्चे भी घर के काम-काज निपटाने में मदद कर रहे हैं। अधिकतर लोग धार्मिक और आध्यात्मिक क्रियाकलापों में सहभागी हो रहे हैं। साथ बैठकर टीवी पर रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिक देख रहे हैं जिससे वे भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं से अवगत हो रहे हैं।

बच्चों को परिवार के साथ समय बिताना अच्छा लग रहा है और वे सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों के प्रति भी जागरूक हुए हैं। पारिवारिक सदस्यों के बीच भावनात्मक जुड़ाव मजबूत हुआ है, उनके भीतर कृतज्ञता और सराहना जैसे गुणों को बल मिला है। परिवार में सबसे ज्यादा बुजुर्ग लोग खुश हैं, क्योंकि काम के सिलसिले में उनके बच्चे उनसे दूर रहते थे जो अब साथ हैं एवं जिनसे उनका अकेलापन भी दूर हुआ है।

इन सबमें महिलाओं की भूमिका काफी सराहनीय है, क्योंकि उन्हीं के प्रयासों से घर का माहौल इस संकट के समय भी खुशनुमा बना हुआ है। लोगों की समझ में आ रहा है कि घर को चलाने में घरेलू महिलाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और जो महिलाएं घर से बाहर काम करती थीं, उन्हें भी घर में लंबे समय तक रहने का मौका मिल रहा है।

परिवार में रहकर कुछ लोग अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं, कोई लिख रहा है, कोई पढ़ रहा है, कोई पेंटिंग तो कोई नृत्य, कोई योग तो कोई बागवानी कर रहा है। यानी जो काम जीवन की आपाधापी में छूट गए थे वे उनको साकार कर रहे हैं, लेकिन यह पूरा सच नहीं है, इस समस्या का एक और पहलू भी है जो बहुत स्याह और परेशान करने वाला है।

लोगों को लंबे समय तक घरों में बंद रहना पड़ रहा है, जिससे परिवारों में तनाव, नौकरी खत्म होने का डर, असुरक्षा की भावना आदि मानसिक बीमारियां घर कर रही है।

इस दौरान देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। देश में राष्ट्रीय महिला आयोग को 23 मार्च से 16 अप्रैल तक ऐसी 587 शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जो सामान्य दिनों से दोगुनी हैं। ऐसे समय में महिलाओं और बच्चों को ही पुरुष की सत्ता का कोपभाजन बनना पड़ रहा है, उनकी निराशा, कुंठा, असुरक्षा, अवसाद एवं कमजोरी का शिकार महिलाओं और बच्चों को झेलना पड़ रहा है।

आज रोजगार की स्थिति अत्यधिक खराब होने के कारण परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। देश भर में करोड़ों मजदूरों और कामगारों के सामने रोजीरोटी का संकट पैदा हो चुका है जिसे जल्दी दूर नहीं किया गया तो लाखों परिवार सड़क पर आ जाएंगे और महामारी के साथ गरीबी उनकी जान ले लेगी, क्योंकि भारत में करीब 93 प्रतिशत लोगों को रोजगार असंगठित क्षेत्रों से प्राप्त होता है, केवल सात प्रतिशत ही संगठित क्षेत्र का हिस्सा हैं जिससे परिवारों में तनाव निराशा एवं असुरक्षा की भावना ज्यादा गहराती जा रही है।

यह सच है कि इस संकट के समय पूरा विश्व कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में एकजुट दिखाई दे रहा है। सभी लोग इस महामारी के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध हैं। जरूरत है तो बस सकारात्मक सोच और सूझ-बूझ की।

यह हमारे धैर्य की परीक्षा है। हम सब एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, जिसके लिए सभी परिवारों में शारीरिक और मानसिक मजबूती की जरूरत है। जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता, जीवन को सादगी से भी जिया जा सकता है।

घोर निराशा के क्षणों में परिवार ही एक ऐसा माध्यम बन जाता है, जहां व्यक्ति स्वयं को पहचान कर अपने को समाज के अनुरूप आदर्शों में ढालने की कोशिश कर सकता है। सहयोग, सहानुभूति, आत्मनियंत्रण, सहिष्णुता, अनुशासन, कर्तव्यपालन, परोपकार, त्याग एवं ईमानदारी जैसे सामाजिक गुणों के द्वारा ही बड़ी से बड़ी समस्याएं घुटने टेकने लगती हैं और नकारात्मकता दूर होती चली जाती है।

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