ओडिशा के तितलागढ़ स्टेशन पर 22 डिब्बों वाली एक पैसेंजर ट्रेन 7 अप्रैल की रात को बिना इंजन 13 किलोमीटर तक चलती गई. ट्रैक पर बड़े पत्थर रख कर किसी तरह ट्रेन को रोका गया. जिस वक्त ये हुआ उस पर ट्रेन पर एक हजार के करीब यात्री सवार थे. अहमदाबाद-पुरी एक्सप्रेस के यात्रियों की किस्मत अच्छी थी कि सुरक्षित बच गए. लेकिन मंगल सेठ का भाग्य ऐसा नहीं था जिसकी एक हफ्ते बाद बिहार के लखीसराय जिले में 10 मीटर पटरी का टुकड़ा हटिया-गोरखपुर मौर्य एक्सप्रेस के कोच में घुस जाने से मौत हो गई. ये पटरी का टुकड़ा रेल लाइन के किनारे रखा था. इन दोनों हादसों ने यात्रियों की सुरक्षा के मुद्दे को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.अक्सर ऐसे हादसों के लिए इंसानी चूक की दुहाई दी जाती है. लेकिन इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेटिव टीम की जांच से जो सामने आया है वो हैरान करने वाला है. जांच से खुलासा हुआ है कि ऐसे हादसों के लिए वो सामंती सोच जिम्मेदार है जिसने रेलवे की निचली प्रबंधन व्यवस्था को जकड़ रखा है.
कई राज्यों में इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर्स ने एक महीने तक जांच की. जांच में रेलवे सिस्टम की आखिरी सुरक्षा के स्तर में ही बड़ी खामी पाई गई. ये खामी थी कि सुरक्षाकर्मी जिन्हें ट्रैकमैन कहा जाता है, वो वहीं ही नहीं पाए गए जहां उनका होना बहुत जरूरी माना जाता है.
ट्रैकमैन का मुख्य काम ट्रैक की निगरानी, सुरक्षा और घिस गई रेल लाइऩों को दुरुस्त करना होता है. इसके लिए उनके हाथों में क्रोबार्स, हथौड़े, चिमटे और अन्य जरूरी सामान दिखना चाहिए. लेकिन इंडिया टुडे की जांच के दौरान कई ट्रैकमैन को झाड़ू, बाल्टी, किचन के चाकू हाथ में लिए देखा गया. ये सब इसलिए कि वो अपने ‘साहबों’ (वरिष्ठ अधिकारी) के सरकारी आवासों की साफ-सफाई कर सकें, किचन में खाना बना सकें.
जांच से खुलासा हुआ कि रेलवे के क्षेत्रीय जोन्स में कई बड़े अधिकारी ट्रैकमैनों को फील्ड से हटाकर अपने घरों में निजी नौकरों की तरह काम ले रहे हैं.
बिहार के बरौनी में ईस्ट सेंट्रल रेलवे के डिविजनल इंजीनियर शैलेश कुमार के सरकारी आवास पर मौजूद ट्रैकमैन मनोज कुमार साह ने वो सब कुछ बताया जिन्हें करने के लिए सुपरवाइजर की ओर से उसे आदेश दिए गए हैं.
मनोज ने इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर को बताया- ‘मैं ड्यूटी का सारा समय उनके (बॉस) घर पर बिताता हूं. मुझे यहां घर में ही रह कर काम करने के लिए कहा गया है.’
रिपोर्टर ने पूछा- ‘कैसा काम?’
मनोज- ‘सफाई, झाड़ू लगाना और एक व्यक्ति (बॉस) के लिए खाना बनाना.’
यहां ये जानना दिलचस्प है कि सरकारी कागजात पर मनोज को ट्रैक ड्यूटी पर मौजूद ही दिखाया जाता है.
रिपोर्टर ने मनोज से पूछा- ‘क्या दफ्तर में हाजिरी लगा दी है?’
मनोज- ‘नहीं, नहीं…हाजिरी यहीं पर ही लगाई जाती है. शीट यहीं मौजूद है.’
ऐसी ही कहानी एक और ट्रैकमैन पंकज यादव की भी दिखी. पंकज को बरौनी में ही तैनात सीनियर सेक्शन इंजीनियर अजय कुमार ठाकुर के सरकारी आवास पर काम करते देखा गया. पंकज को घर के बाहर स्थित बाग की फेंसिंग बनाते देखा गया.
जब पंकज से पूछा गया कि ये फेंसिंग किसके लिए है? तो जवाब मिला, ‘ये साहब के लिए है. वो यहां पौधे उगाएंगे. साग- सब्जियों जैसी खाई जा सकने वाली फसलें लगाई जाएंगी. मेरी हाजिरी यहीं लग जाएगी. उन्होंने कहा है कि पहले ये काम करो.’
बता दें कि पिछले साल ही रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के नाते अश्विनी लोहानी ने पदभार संभाला था तो सबसे पहले रेलवे नेटवर्क में छायी वीआईपी कल्चर को खत्म करने की प्रतिबद्धता जताई थी.रेलवे में शीर्ष पद पर नियुक्ति के बाद लोहानी ने मानव संसाधन को ऐसा एरिया बताया था जहां प्राथमिकता से काम करने की जरूरत है. साथ ही कर्मचारियों के कल्याण पर भी पूरा ध्यान देने पर जोर दिया था.
लोहानी ने बीते साल रेलवे स्टाफ को लिखी एक चिट्ठी में कहा था, ‘मैं हमेशा मानव संसाधन की श्रेष्ठता पर यकीन रखता हूं. मेरे लिए ग्राहकों से पहले मेरे कर्मचारी आते हैं. मेरा पक्का मानना है कि संतुष्ट और खुश कर्मचारी किसी भी संगठन की कामयाबी के लिए पहली आवश्यकता है…और ये महान संगठन (रेलवे) भी इस मामले में अपवाद नहीं है. इसलिए मैं अपेक्षा करता हूं कि कर्मचारियों का कल्याण सभी की पहली चिंता होनी चाहिए.’
हालांकि जमीनी स्तर पर रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के निर्देशों को लेकर इंजीनियरों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी लगती. इंडिया टुडे ने उत्तरी जोन में भी हालात अलग नहीं पाए. अंडर कवर रिपोर्टर ने ट्रैकमैन राज कुमार को मेरठ में सीनियर सेक्शन इंजीनियर मोहम्मद आशिक के हाउसिंग कॉम्पलेक्स की साफ-सफाई करते देखा.
राज कुमार ने बताया, ‘मैं फर्श पर झाड़ू लगा चुका हूं, कूड़े को ठिकाने लगाया है, एक वाहन से सामान उतारा. शाम को एक बार और झाड़ू लगाऊंगा. फिर दूध का इंतजाम करूंगा, कुछ बर्तन भी धोऊंगा. मैं भला क्यों झूठ बोलूंगा?’
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ही मोदीनगर में ट्रैकमैन चंद्रशेखर को सीनियर सेक्शन इंजीनियर रामेश्वर सिंह के घर के फर्श को साफ करते देखा गया. चंद्रशेखर ने कहा, ‘झाड़ू लगाने में 10 मिनट और लगेंगे. मैं 10 मिनट में इसे पूरा कर लूंगा.’
लुधियाना में असिस्टेंट डिवीजनल इंजीनियर डी एस सिद्धू के सरकारी आवास पर मौजूद ट्रैकमैन जीवन ने अंडर कवर रिपोर्टर को बताया कि कैसे साहब के घर पर रेलवे स्टाफ शिफ्ट में काम करता है.
जीवन ने बताया, ‘सब कुछ करना पड़ता है. साहब के लिए चपाती बनानी पड़ती है. मैं यहां दो से चार घंटे रहता हूं. फिर दूसरा ट्रैकमैन आता है. उसके बाद अगला…यहां एक व्यक्ति को हर वक्त अनिवार्य तौर पर रहना पड़ता है.’
ऑल इंडिया रेलवेमैन्स फेडेरेशन के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा का कहना है कि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन लोहानी की निचले स्तर के प्रबंधन को चेतावनी के बाद निजी कामों के लिए रेलवे स्टाफ को लगाया जाना कम हुआ है. मिश्रा ने साथ ही जोड़ा कि ये कहना गलत होगा कि इस तरह के मामले पूरी तरह खत्म हो गए हैं.’
मिश्रा ने रेलवे में सुरक्षा से जुड़े पदों पर रिक्तियों को भरने के लिए बड़े पैमाने पर नियुक्ति की मुहिम छेड़े जाने की आवश्यकता जताई.
उत्तर रेलवे के प्रवक्ता नितिन चौधरी ने कहा कि सुरक्षा स्टाफ का इस्तेमाल सुपरवाइजरों की ओर से निजी कामों के लिए किए जाने का कोई भी मामला सामने आता है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
चौधरी ने कहा, ‘ऐसी कोई भी चीज होती हमने पकड़ी तो हम सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगे.’ हालांकि चौधरी ने साथ ही कहा कि पूरे नेटवर्क में स्टाफ का दुरुपयोग करने की घटनाओं में तेजी से कमी आई है.