पंजाब में मजदूरों की बढ़ती कमी को देख पढ़े-लिखे नौजवान भी खेतों में उतर आए हैं। लॉकडाउन से पहले तक उन्होंने सालों नौकरी के लिए धक्के खाए लेकिन अब अपने सपनों को पीछे छोड़ मजदूरी करना ही बेहतर समझा। बठिंडा के विभिन्न गांवों में ऐसे दर्जनों युवा पहुंच रहे हैं जो किसानी करने को तैयार हैं। उनके हाथों में अब डिग्रियों की बजाय बीज की थैलियां, कस्सी व पनीरी नजर आने लगी हैं। इन सभी का मानना हैं कि हर जगह लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा हैं। कब तक ऐसे ही बैठे रहेंगे, बेहतर हैं कि अपनी माटी से ही सोना निकाला जाए।
हाथों में डिग्रियों की बजाय खेतों में डलने वाले बीज की थैलियां, कस्सी व पनीरी
बठिंडा के गांव लहरी के सोनू पहली बार खेतों में काम करने उतरे। उन्होंने बताया कि वह बीए पास हैं और दुकान करता था। कर्फ्यू के दौरान काम धंधा चला गया। मजदूरों की कमी के बारे में सुन उसने धान की रोपाई करने का फैसला लिया। मजदूरों का तो पता नहीं आएंगे या नहीं, कम से कम घर की आमदन तो शुरू होगी। प्रति एकड़ या दिहाड़ी के हिसाब से अच्छे पैसे मिल जाते हैं।
यही मनोदशा संगरूर के गांव जखेपल के बलजिंदर सिंह जखेपल की है। उन्होंने एमए पंजाबी के साथ बीएड कर रखी है। दो बार पीटेट व तीन बार सीटेट पास किया। कंप्यूटर का कोर्स भी किया लेकिन अब परिवार के साथ धान की रोपाई में जुटे हैं। गांव शाहपुर कलां के जसविंदर सिंह ने भी एमए पंजाबी, एमए हिस्ट्री के अलावा लाइब्रेरियन की डिग्री की हुई है। उन्होंने भी खेती करना बेहतर समझा।
गांव मिर्जेआणा के राजिंदरपाल सिंह ने आइटीआइ की हुई है। वह बहनीवाल में दुकान भी चलाते हैं। मजदूरों की समस्या के मद्देनजर वह भी परिवार के साथ खेतों में हाथ बंटा रहे हैं। धान की रोपाई नहीं आती थी, उसी कारण पहले आसपास के किसानों से सीखा, फिर खेतों में उतरे। स्किलड होने के बावजूद मिट्टी में मिट्टी होने से वह उदास नहीं हैं। कहते हैं-पहली बार परिवार के साथ काम करने का मौका मिला।
इसलिए आई ये नौबत
-धान के सीजन से पहले हर साल हजारों मजदूर बठिंडा स्टेशन पहुंच जाते थे लेकिन इस बार कोई नहीं आया।
-सरकार ने श्रमिकों व धान के सीजन के लिए कोई प्रबंध नहीं किया। जो मजदूर आना भी चाहते हैं, उनके लिए भी विशेष प्रबंध नहीं।
-युवा लंबे समय से नौकरी के लिए जद्दोजहद कर रहे। कर्फ्यू से पहले संगरूर में बीएड टेट पास अध्यापकों ने तो चार महीने तक लगातार धरना दिया था।
-लॉकडाउन के चलते बड़े स्तर पर लोग बेरोजगार हुए, उन्हीं को देख अब युवा हर कोई काम करने को मजबूर।
-बड़ी संख्या में मजदूर अपने राज्यों को लौट चुके। अकेले बठिंडा से सरकारी रिकॉर्ड में ही तीन हजार के करीब गए।
इंडस्ट्री में लेबर की कमी, रोजगार दफ्तर पहुंच रही कंपनियां
उधर, इंडस्ट्री में लेबर की कमी के बाद बेरोजगारी की मार झेल रहे पंजाबियों के लिए नौकरी का अच्छा मौका है। रोजगार कार्यालय के पास विभिन्न कंपनियों से वर्करों की डिमांड पहुंच रही है। अकेले बठिंडा स्थित रिफाइनरी में ही दो हजार से ज्यादा वर्करों की जरूरत है। अन्यइंडस्ट्री से भी 5 हजार से ज्यादा लेबर की डिमांड आई है। रोजगार कार्यालय ने इंडस्ट्रियों की मांग के अनुसार काम करना शुरू कर दिया है। बीते दो सप्ताह में ही कार्यालय के पास एक हजार से अधिक रिज्यूम आ चुके हैं।
जिला रोजगार व कारोबार ब्यूरो के डिप्टी सीईओ तीर्थ पाल ङ्क्षसह ने बताया कि स्किलड वर्करों की काफी डिमांड है। बठिंडा के गुरु गोबिंद सिंह रिफाइनरी के अलावा चाहल स्पिनटैक्स, स्पोर्टकिंग कंपनियों में वेल्डर, राजमिस्त्री, कारपेंटर, पेंटर, स्टील वाइंडर, इलेक्ट्रीशियन, ग्राइंडर, गैस कटर, रेगर, पाइप फिटर, फिटर, खलासी, हेल्पर, सिविल वर्कर व अनस्किल्ड वर्करों की जरूरत है। गौर हो कि लॉकडाउन के दौरान बठिंडा से 6 हजार के करीब वर्कर ट्रेनों व बसों के जरिए लौटे हैं।
तो बंद हो जाएगी इंडस्ट्री : सुखविंदर जग्गी :
बठिंडा स्माल स्केल इंडस्ट्री के पूर्व प्रधान सुखविंदर सिंह जग्गी का कहना है कि अब इंडस्ट्री में लेबर की कमी है। माल तैयार करना मुश्किल हो गया है। खर्च पहले जितने ही हैं। यह कमी पूरी नहीं हुई तो इंडस्ट्री बंद हो जाएगी।
बठिंडा की आइटीआइ स्थित इंडस्ट्रियलिस्ट सेंटर के प्रधान मोहनजीत ङ्क्षसह पुरी का कहना है कि इंडस्ट्री खत्म हो गई है। आधी से भी कम इंडस्ट्री चल रही है।