2014 में नई सरकार बनने के बाद मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत, योग, जनधन, अंत्योदय, सबके लिए घर, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्टैंड अप इंडिया जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रमों की शुरुआत की गई. लेकिन इसमें देश में सीधे रोजगार देने के लिए किसी कार्यक्रम का झंडा नहीं लहराया गया. क्या ये सरकार की चूक थी कि आज देश के सामने रोजगार की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा बनकर खड़ा हुआ है.
2014 में मोदी सरकार के लॉंच हुए कार्यक्रम
1. प्रधानमंत्री जनधन योजना (28 अगस्त 2014): इस कार्यक्रम के तहत सरकार की कोशिश फाइनेंनशियल इंक्लूजन की है जिससे देश के सभी नागरिकों का बैंक खाता बनाकर वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने की है.
2. डिजिटल इंडिया (26 अगस्त 2014): इस कार्यक्रम के तहत सरकार की कोशिश देश के आखिरी नागरिक तक डिजिटल सुविधा पहुंचाते हुए उसे नॉलेज इकोनॉमी से जोड़ने की है.
3. मेक इन इंडिया (25 सितंबर 2014): इस कार्यक्रम के तहत देश को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की कोशिश है जिससे दुनियाभर की कंपनियां देश में आकर उत्पादन के काम को आगे बढ़ा सकें.
4. अंत्योदय योजना (25 सितंबर 2014): इस योजना से सरकार की कोशिश देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों से गरीबी दूर करने की है. इसे पूरा करने के लिए स्किल डेवलपमेंट का सहारा लेने का प्रावधान है.
5. स्वच्छ भारत मिशन (2 अक्टूबर 2014): इस कार्यक्रम के जरिए देश को 2019 तक ओपन डेफिकेशन (खुले में सौंच) की समस्या से निजात दिलाना है. साथ ही इससे मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह से बंद करने पर भी जोर है.
6. आदर्श ग्राम योजना (11 अक्टूबर 2014): इस राष्ट्रीय योजना से देशभर में ग्राम स्वराज की दिशा में आगे बढ़ने की है. इस योजना को सांसद निधि फंड से जोड़ा गया है और सभी सांसदों को 2019 तक 3 गांव को आदर्श बनाना है.
लिहाजा, मई 2014 में मोदी सरकार ने कार्यभार संभालने के बाद जिन योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर लांच करने की कोशिश की उनमें से किसी योजना का सीधा सरोकार देश में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नहीं थे. हालांकि ज्यादातर योजनाओं में नए रोजगार पैदा होने की उम्मीद जरूर है लेकिन वह तभी संभव है जब यह योजनाएं सफल हों.
अब वैश्विक स्तर पर अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों द्वारा आईटी और सेवा क्षेत्र में बड़े फेरबदल करने के बाद भारत के सामने बड़े स्तर पर लोगों का रोजगार छिनने का खतरा पैदा हो चुका है. वहीं सरकार द्वारा 2014 में शुरू किए गए कार्यक्रमों में रोजगार पैदा करने के लिए किसी राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की कमी रोजगार के संकट को और भी गहरा कर रहा है.