आजाद हिन्द फ़ौज की 75वीं वर्षगांठ पर दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से तिरंगा फहरा कर नई परंपरा शुरू की तो हिल्सक्वीन शिमला को भी नेताजी सुभाष चंद बोस याद आ गए। यहीं इस रहस्य से पर्दा उठा था कि फैजाबाद के “गुमनामी बाबा” नेताजी नहीं हैं। शिमला स्थित प्रयोगशाला में पूर्व एनडीए सरकार के कार्यकाल में नेताजी की मौत के रहस्य से जुड़े संदेहास्पद दस्तावेजों की जांच हुई थी।
सरकारी परीक्षक प्रश्नास्पद प्रलेख (जीइक्यूडी ) के नाम से यह प्रयोगशाला पूरे विश्र्व में विख्यात रही है। यहां देश की प्रमुख हस्तियों के मूल दस्तावेजों की भी जांच पड़ताल की गई। राजीव गांधी पर जब राजघाट पर हमला हुआ तो हमलावर कर्मजीत सिंह से जुड़े दस्तावेजों को भी परखने के लिए यहीं लाया गया था। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में गुमनामी बाबा की लिखावट का मामला उछला तो इसे परीक्षण के लिए शिमला भेजा गया था। करीब 16 साल पूर्व बाबा के लिखे गए पत्रों की जांचा गया। मुखर्जी आयोग ने इसे सौंपा था।
कौन थे बाबा
फैजाबाद में एक गुमनाम बाबा रहते थे। उनकी शक्ल नेताजी से मिलती थी। दिसंबर, 1985 में उनकी मौत हो गई थी। लोगों के आग्रह पर केंद्र ने इनके लिखे पत्रों की जांच कराई। शिमला स्थित प्रयोगशाला में इसके लिए सुभाष चंद बोस के कोलकाता संग्रहालय में मौजूद मूल पत्रों, डायरियों की लिखावट से मिलान कराया, लेकिन दोनों में अंतर पाया गया।
हवाला कांड, हर्षद मेहता मामले का भी परीक्षण
हवाला कांड के जैन बंधुओं की डायरियों की प्रमाणिकता, हर्षद मेहता की लिखावट यहीं पर जांची गई। आतंकवाद से जुड़े दस्तावेजों, देश में हुए बड़े घोटालों, जालसाजों के सैकड़ों मामलों का वैज्ञानिक आधार पर परीक्षण हुआ।
अब सीएफएल के अधीन
एक वक्त यह लैब आईबी के अधीन रही। फिर पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के मातहत रही, लेकिन पूर्व यूपीए सरकार ने शिमला की इस मशहूर प्रयोगशाला को चंडीगढ़ स्थित सेंट्रल फॉरेंसिक प्रयोगशाला के अधीन कर दिया। यह सीबीआइ के सफेदपोश अपराधों से संबंधित जटिल मामलों को सुलझाने में अहम योगदान निभा रही है