आयोग ने यह अहम सिफारिश देश के विकास की त्रिवर्षीय कार्ययोजना में की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की गवर्निग काउंसिल की हाल में हुई बैठक में इस कार्ययोजना के मसौदे पर चर्चा हुई थी। इसमें राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। आयोग ने श्रम कानूनों में जिन बदलावों पर जोर दिया है, उनमें सबसे प्रमुख ओवरटाइम के घंटे बढ़ाना है। आयोग का कहना है कि फैक्ट्री कानून, 1948 के तहत एक तिमाही में अधिकतम 50 घंटे ओवरटाइम की अनुमति है।
यह प्रावधान नियंत्रणकारी है। केंद्र सरकार ओवरटाइम के घंटे बढ़ाकर 100 करने के लिए एक विधेयक लेकर आई। इसे लोकसभा ने पारित भी कर दिया है, लेकिन राज्यसभा से अभी इसे मंजूरी मिलनी बाकी है। आयोग ने छोटी कंपनियों को छंटनी का अधिकार देने की वकालत भी की है। फिलहाल औद्योगिक विवाद कानून, 1947 के तहत अगर किसी कंपनी में 100 से अधिक कामगार काम करते हैं तो कंपनी उनकी छंटनी नहीं कर सकती। हाल में गुजरात, राजस्थान और हरियाणा ने यह सीमा बढ़ाकर 300 की है।
इस तरह के श्रम सुधार होने से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में नौकरियां बढ़ेंगी। आयोग का कहना है कि केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर श्रम नियमों में सुधार करना चाहिए। श्रम कानून कठिन होने की वजह से नई कंपनियां वस्त्र उद्योग जैसे संगठित मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में कदम रखने से परहेज करती हैं। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए केंद्र और राज्य दोनों ही इस पर कानून बना सकते हैं। हालांकि राज्यसभा में बहुमत के अभाव के चलते केंद्र के लिए श्रम सुधारों को आगे बढ़ाना कठिन है। इसलिए राज्यों के स्तर पर इन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और हरियाणा ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है।
आयोग का कहना है कि वैसे तो श्रम सुधार केंद्र सरकार के माध्यम से किए जाएं ताकि उन्हें पूरे देश में एक साथ लागू किया जा सके। श्रम सुधार राजनीतिक तौर संवेदनशील हैं, इसलिए इनको लागू करने के लिए केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर वैकल्पिक उपाय करने चाहिए।