इस चुनाव में वह चुनावी खुमार देखने को नहीं मिला है जिसकी लोगों को उम्मीद थी। तमाम प्रचार तंत्र के इस्तेमाल के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में भी पिछले चुनाव जैसा आकर्षण नहीं दिख रहा है। और इन सबके बीच वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के हीरो प्रशांत किशोर उर्फ पीके पूरी तरह खबरों से गायब हैं। यह किस ओर इशारा कर रहा है और इसके क्या मायने निकल सकते हैं? और क्या भाजपा को पीके की कमी महसूस हो रही है?
पीके
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