दुनिया में 64 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका शक्तिशाली रोगाणु कोरोना: शोधकर्ता वैज्ञानिक

इंसान में कोरोना वायरस के पहली बार दस्तक देने की तारीख तो शायद ही कभी पता चल पाए। लेकिन वैज्ञानिक विश्लेषकों की मानें तो आज से लगभग छह महीने पहले चीन में यह वायरस फैलने लगा था।

विशेषज्ञों का कहना है कि इन छह महीनों में पूरी दुनिया में लगातार अपनी प्रतिकृतियां बनाकर कोरोना ने साबित किया है कि वह किसी शक्तिशाली फोटोकॉपी मशीन जैसा है।

इसकी विभिन्न प्रतिकृतियां 64 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुकी हैं और करीब पौने चार लाख लोगों की जान ले ली है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह इसका सिर्फ पहला दौर है, आगे कई दौर आने बाकी हैं।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कोरोना एक शक्तिशाली रोगाणु है। इससे हमारी लड़ाई  लंबी चलने वाली है। हालांकि पिछले छह माह में तमाम सरहदें गिराकर विशेषज्ञों द्वारा जुटाई गई जानकारियों ने न सिर्फ अदृश्य दुश्मन से लड़ाई आसान की है, बल्कि भविष्य के लिए वायरसों को लेकर हमारी समझ भी बढ़ा दी है।

कई हफ्तों तक रहस्यमयी रहा, 7 जनवरी को पता लगा चीन ने शुरू में इसे निमोनिया कहा। फिर वायरस की आशंका जताई जिसका कोई नाम नहीं था।

हफ्तों तक वुहान में यह रहस्यमयी बीमारी बनकर फैल रहा था। स्वास्थ्य अफसरों ने 2002 में आए सार्स वायरस की आशंका जताई। फिर वैज्ञानिकों ने तीन मरीजों के सैंपल लिए और रोगाणु के जीनोम की सार्स वायरस से तुलना की।

ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से पता लगा कि संक्रमण फैला रहा वायरस अलग था जिस पर स्पाइक (कांटे) निकले हुए थे। आखिरकार 7 जनवरी को चीनी वैज्ञानिकों ने इसे नोवेल कोरोना वायरस नाम दिया।

11 फरवरी को इसका नाम सार्स कोव-2 रखा गया। शुरुआत में इसे 2019-एनकोव (नावेल कोरोना वायरस) कहा गया फिर 11 फरवरी को टैक्सोनॉमी की अंतरराष्ट्रीय समिति ने इसे सार्स-2 (कोरोना वायरस-2) नाम दिया।

10 जनवरी को वुहान के स्वास्थ्य आयोग ने बताया था कि यह पिछले कुछ हफ्तों में 41 लोगों को संक्रमित करने के साथ एक व्यक्ति को मार चुका है।

उस वक्त यह पहली मौत थी। उसी दिन चीनी वैज्ञानिकों ने इसका जीनोम पेश किया। इसका ब्लूप्रिंट मिलने पर दुनिया भर की प्रयोगशालाओं को अनुसंधान में आसानी हो गई।

वायरस का कोड प्रकाशित होने के तीन घंटे के भीतर ही सेन डियागो में इनोवियो फार्मास्युटिकल ने इसकी वैक्सीन पर काम करना शुरू कर दिया था।

इसके स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाने पर काम चल रहा है। अभी तक रेमडेसिविर दवा कुछ हद तक सफल रही है। यह वायरस की प्रतिकृतियां बनाने के तंत्र को रोकती है।

 

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