बस्ती-गोरखपुर मंडल में मार्च से एक दिसंबर तक 751 कोरोना मरीजों की मौत हो चुकी है। इनमें से 60 प्रतिशत ऐसे थे जो बेहद गंभीर स्थिति (हाई रिस्क) में होने के बावजूद सामान्य मरीज की तरह इलाज कराते रहे। हालत गंभीर होने पर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। देरी से मेडिकल कॉलेज पहुंचने की वजह से कोरोना के मरीजों की मौत का ग्राफ बढ़ता चला गया।
जानकारी के अनुसार, बीआरडी मेडिकल कॉलेज में शासन की ओर से एक डेथ ऑडिट कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने जब कोरोना से होने वाली मौतों के संबंध में जांच पड़ताल की तो पता चला कि कोविड के लक्षण होने के बावजूद लोग सामान्य तरीके से इलाज कराते रहे। जब मरीज की हालत गंभीर हुई तो मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। इनमें 40 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जो हाई रिस्क श्रेणी में थे, जबकि 20 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्हें सांस लेने में ज्यादा तकलीफ थी। ऐसे मरीजों को मेडिकल कॉलेज लाने में देरी की गई। कई मरीज तो होम आईसोलेशन में रहे, जिससे उनकी मौत हो गई। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 12 से अधिक है।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार ने बताया कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज लाए गए कोरोना मरीजों में 50 से 60 प्रतिशत हाई रिस्क श्रेणी में थे। पहले से ही हालत गंभीर होने की वजह से उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। ऐसे मरीजों को यदि समय से इलाज मिल गया होता तो इतनी मौतें नहीं होतीं।
गोरखपुर और बस्ती मंडल में पहली मौत 30 मार्च को बस्ती निवासी 25 वर्षीय युवक की मेडिकल कॉलेज में हुई थी। गोरखपुर में पहली मौत 29 अप्रैल को एक बुजुर्ग की हुई थी। जून माह में गोरखपुर में 13 मरीजों की मौत हुई। जबकि जुलाई में यह संख्या 48 हो गई। अगस्त में 131, सितंबर में 252, अक्तूबर में 307 और नवंबर माह में 323 मरीजों की जान चली गई। गोरखपुर जिले में मृत्यु दर 1.4 फीसदी है। वहीं, गोरखपुर-बस्ती मंडल में नवंबर तक कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या 751 हो चुकी है। खास बात यह है कि जान गंवाने वालों में अधिकतर मरीजों को लिवर, किडनी, हार्ट सहित अन्य गंभीर बीमारियां थीं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि कोरोना केस में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ऑक्सीजन लेवल की है। अगर मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें। इसी वजह से लोगों को सलाह दी जा रही है कि अपने घरों में ऑक्सीमीटर जरूर रखें। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन का स्तर 95 से 100 फीसदी के बीच रहता है। यदि यह लेवल 95 से कम होकर 92 फीसदी से नीचे आ जाए तो खतरा बढ़ जाता है। वहीं, लोग अब बेपरवाह हो चुके हैं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। ऐसे में ठंड में ज्यादा सावधानी बरतें।