सुप्रीम कोर्ट ने विशेष आवश्यकता वाले (दिव्यांग) बच्चों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी अपने आदेशों का पालन न करने पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगाते हुए अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने उसके आदेशों और निर्देशों का पालन नहीं किया है। पीठ ने उनसे तीन सप्ताह के भीतर निर्देशों के अनुपालन पर अलग-अलग हलफनामे दाखिल करने को कहा।
‘बताइए अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए’
कोर्ट के 15 जुलाई के आदेश में कहा गया है, “यदि कोई राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसा हलफनामा दाखिल करने में विफल रहता है तो ऐसे प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव/सचिव सुनवाई की अगली तारीख यानी 29 अगस्त, 2025 को उपस्थित रहेंगे, जब इन याचिकाओं को फिर से सूचीबद्ध किया जाएगा और बताएंगे कि अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।”
गौरतलब है कि रजनीश कुमार पांडे ने उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में विशेष शिक्षकों की कमी को लेकर अधिवक्ता प्रशांत शुक्ला के माध्यम से कोर्ट का रुख किया।
सात मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 28 मार्च तक विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए शिक्षकों के स्वीकृत पदों की संख्या अधिसूचित करने का निर्देश दिया था।
‘चयन और नियुक्ति केवल योग्य, सक्षम या पात्र शिक्षकों का हो’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके 2021 के फैसले के बावजूद किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऐसे स्वीकृत पदों पर नियुक्तियां नहीं कीं। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने का दावा करने वाले 17 शिक्षकों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शिक्षा के अधिकार को सफल बनाने के लिए बच्चों को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करने में मदद करने हेतु प्रत्येक स्कूल में योग्य पेशेवरों की नियुक्ति आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चयन और नियुक्ति केवल योग्य, सक्षम या पात्र शिक्षकों का ही किया जाना चाहिए।