झारखंड में हार ने भाजपा की बड़ी कमजोरी को उजागर कर दिया। पार्टी इस समय राज्य इकाइयों में सशक्त नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में भी सीटें घटने का एक बड़ा कारण मजबूत चेहरे की कमी माना गया। अगले डेढ़ महीने में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को सशक्त जमीनी नेताओं की कमी महसूस होगी।

दिल्ली में भाजपा के पास मदनलाल खुराना, सुषमा स्वराज, साहिब सिंह वर्मा या विजय कुमार मल्होत्रा के कद का कोई नेता नहीं है। ऐसे में पार्टी दिल्ली में विधानसभा चुनाव केजरीवाल बनाम मोदी बनाने से बचना चाहती है।
पार्टी में सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा ना होने से चुनाव में भाजपा का चेहरा प्रधानमंत्री मोदी ही होंगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी जाना पहचाना चेहरा तो हैं लेकिन अपने दम पर विधानसभा चुनाव नहीं जिता सकते।
भाजपा नेतृत्व का मानना है कि विजय गोयल कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं लेकिन पूरी दिल्ली में नहीं। तीसरे बड़े नेता हर्षवर्धन केंद्रीय मंत्री हैं और राज्य की राजनीति से लगभग बाहर हैं।
यही वजह है कि भाजपा के राज्य प्रभारी और केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पिछले दिनों जब मनोज तिवारी को सीएम बनाने की घोषणा की तो चार घंटों के अंदर ही उन्हें अपने बयान पर सफाई देनी पड़ी।
पिछली बार भी चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल न बने इस प्रयास में भाजपा नेतृत्व ने अंतिम समय में केजरीवाल की सहयोगी रही किरण बेदी को पार्टी में शामिल कर सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था। बेदी खुद अपनी सीट नहीं जीत पाई थीं और भाजपा को राज्य में 70 में महज 3 सीटें मिलीं।
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