दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आने से पहले ही कई सर्वेक्षणों ने भाजपा की प्रचंड जीत की भविष्यवाणी कर दी है। अगर ऐसा हुआ तो निगम चुनावों का नया इतिहास लिखा जाएगा। ऐसा इसलिए भी कि पहली बार कोई दल निगम में लगातार तीसरी बार सत्ता में आएगा। रविवार को हुए निगम चुनावों के नतीजे बुधवार को आने वाले हैं। अगर नतीजे सर्वेक्षण के हिसाब से आए तो मान लिया जाएगा कि दो साल पहले प्रचंड बहुमत से दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की दिल्ली से विदाई हो गई और कांग्रेस में अपने को फिर से खड़ा करने की कूवत खत्म हो चुकी है।

भाजपा के नेता चाहे जो दावा करें, लेकिन उन्होंने अपने सभी निगम पार्षदों का टिकट केवल इसलिए काटा क्योंकि वे निगम को चलाने में नकारा साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले भाजपा नेतृत्व भी दिल्ली नगर निगम चुनाव के मुकाबले में बने रहने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा था। यह मान लिया गया था कि अगर आप पंजाब विधानसभा चुनाव जीत लेगी तो उसे निगम में जीतने से कोई रोक नहीं पाएगा। वहीं कई साल तक दिल्ली की नंबर वन पार्टी रही कांग्रेस फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव में महज नौ फीसद वोट लाकर हाशिए पर चली गई थी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की हार से भले ही कांग्रेस नेतृत्व को भारी झटका लगा हो, लेकिन पंजाब की जीत ने दिल्ली कांग्रेस के हौसले को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। माना जाता है कि जो वोट आप को पिछले दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में मिले उनमें ज्यादातर कांग्रेस के परंपरागत वोट थे। वोटों का यही समीकरण पंजाब में था जहां आप सफल नहीं हो पाई।
वहीं सरकारी खर्चे पर पार्टी का विज्ञापन दिए जाने के मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल ने आप से 97 करोड़ रुपए वसूल करने के आदेश दिए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने आरटीआइ के माध्यम से शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक कर आप सरकार के कुशासन के कई मामले उजागर कर दिए। संयोग से इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपना व्यक्तिगत मानहानि का मुकदमा लड़ने के लिए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को फीस के रूप में करीब चार करोड़ रुपए सरकारी खजाने से देने के आदेश जारी करवाए। भुगतान में अड़ंगा लगा और इससे उनकी भारी किरकिरी हुई। इसी दौरान आप सरकार के एक आयोजन में खाने का भुगतान 13 हजार रुपए प्रति प्लेट करने का मामला सामने आया। इसके बाद 13 अप्रैल को राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव के नतीजों में आप उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।इन झटकों के बाद चुनावी मुद्दे ही बदल गए।
कांग्रेसी नेता आपस में लड़ने लगे। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह, प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक समेत अनेक नेता पार्टी अध्यक्ष पर सीधा आरोप लगाकर भाजपा में शामिल हो गए। अनेक दिग्गज नेताओं की नाराजगी सार्वजनिक होेने लगी। मुद्दा आप सरकार और निगम की नाकामी से हटकर कांग्रेस की गुटबाजी बन गया। अजय माकन ने खुद के प्रयास से निगम चुनाव के लिए हाईटैक तैयारी की थी और निगमों को आत्मनिर्भर बनाने से लेकर उसकी उपयोगिता बढ़ाने की एक योजना बनाई थी, लेकिन कांग्रेस की गुटबाजी ने उन सभी पर पानी फेर दिया। गुटबाजी तो कांग्रेस के स्वभाव में ही है लेकिन इस बुरे हालात में जब पार्टी के सामने अपना वजूद बचाने का संकट है, पार्टी के नेता अपने अहम की लड़ाई लड़कर निगम चुनाव के मुख्य मुकाबले से बाहर होते दिख रहे हैं।
दस साल से निगमों पर काबिज भाजपा को एक बड़ा वर्ग मुख्य मुकाबले से बाहर मान रहा था, वहीं भाजपा भारी बहुमत से निगमों की सत्ता में लौटती दिख रही है, इसके संकेत अनेक संस्थानों के सर्वेक्षणों और रविवार को मतदान के दिन के माहौल से मिलने लगे हैं। निगम चुनावों के लिए आप के नेता केजरीवाल अपने तरीके से आक्रामक चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन चौतरफा आरोपों से घिरने के बाद वे अजीबो-गरीब बातें करने लगे। कभी कहा कि निगम की सत्ता में आने पर गृह कर खत्म कर देंगे तो कभी कहा कि सभी अनधिकृत निर्माणों को नियमित कर देंगे। इतने से भी काम नहीं चला तो उन्होंने विपक्षी पार्टियों के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया।
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