हवा में मौजूद छोटे कण (फाइन पार्टिकुलेट मैटर- पीएम) नमी सोख लेते हैं। इससे प्रदूषण मापने वाले उपकरण ठीक से काम नहीं कर पाते। इस प्रक्रिया को हाइग्रोस्कोपिक ग्रोथ कहा जाता है।
दिल्ली में सर्दियों के दौरान हवा में नमी की वजह से प्रदूषण के स्तर को 20% तक कम आंका जा सकता है, क्योंकि हवा में मौजूद छोटे कण (फाइन पार्टिकुलेट मैटर- पीएम) नमी सोख लेते हैं। इससे प्रदूषण मापने वाले उपकरण ठीक से काम नहीं कर पाते। इस प्रक्रिया को हाइग्रोस्कोपिक ग्रोथ कहा जाता है। यह खुलासा यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम यूके के शोधकर्ताओं के एनपीजे क्लीन एयर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में हुआ है।
यह अध्ययन दिल्ली में पीएमवन प्रदूषण को समझने में मदद करता है। स्विस संगठन आईक्यूएयर की 2024 विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। पीएम1 कण बहुत छोटे होते हैं। ये एक माइक्रोन से भी कम आकार के होते हैं। ये फेफड़ों में जाकर रक्तप्रवाह (ब्लडस्ट्रीम) में प्रवेश कर सकते हैं और सेहत पर असर डाल सकते हैं। शोधकर्ता यिंग चेन ने बताया, वायु प्रदूषण को मापते समय नमी के प्रभाव को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो खासकर ज्यादा नमी वाली परिस्थितियों में प्रदूषण का स्तर असल से कम दिख सकता है।
घरेलू ईंधन पर नियंत्रण से मिल सकते हैं सटीक आंकड़े :
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगर बायोमास जलाने और घरेलू ईंधन के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन को कम किया जाए, तो वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इन स्रोतों से निकलने वाले क्लोरीन कण प्रदूषण के स्तर के गलत आकलन की वजह बनने वाली नमी को बहुत तेजी से सोखते हैं। अगर इन उत्सर्जनों पर काबू पाया जाए, तो वायु प्रदूषण के आंकड़े ज्यादा सटीक हो सकते हैं।
दिसंबर-जनवरी में सबसे गलत होती है माप
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा गलत आकलन ठंडी सुबह के वक्त (दिसंबर-जनवरी में) होता है, क्योंकि तब नमी और प्रदूषण दोनों ही चरम पर होते हैं। अध्ययन के मुताबिक, इस दौरान प्रदूषण की माप 20 फीसदी तक कम हो सकती है, यानी पीएम1 के स्तर में औसतन 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की कमी आंकी जा सकती है।
मानसून में होता है सटीक आकलन मानसून (जुलाई-सितंबर) के मौसम में प्रदूषण का आकलन सटीक होता है। इसका कारण यह है कि भारी बारिश के कारण प्रदूषित कण धुल जाते हैं, जिससे वे नमी सोखकर फैल नहीं पाते। गर्मी (अप्रैल-जून) के महीनों में भी प्रदूषण मापने में ज्यादा गलती नहीं होती, क्योंकि गर्मी में नमी बहुत कम होने के कारण यह कण ज्यादा नहीं फैल पाते।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) की सुबह के समय भी प्रदूषण को गलत तरीके से कम आंका जाता है। इस दौरान औसत आर्द्रता 80 फीसदी होती है। इससे प्रदूषण स्तर में 8.5 फीसदी तक की कमी देखी जाती है। शोधकर्ता चेन ने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम10 के स्तर की ज्यादा निगरानी की जानी चाहिए। इससे वायु प्रदूषण की बेहतर समझ मिलेगी और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रभावी उपाय किए जा सकेंगे।