जिले की सीमा से सटे गांवों में भोज के लिए वन्यजीवों का शिकार करके मांस पकाया जाता है। यह हकीकत उस समय उजागर हुई जब मध्य प्रदेश के सतना जिले में मझगवां वन रेंज की अमिरिती बीट में शावक बाघ की मौत के मामले की जांच हुई। वन अफसरों के हत्थे चढ़े चार ग्रामीणों ने हकीकत बयां करते हुए दावत के लिए सांभर का शिकार करते समय बाघ के मर जाने की जानकारी दी। आदिवासियों के गांवों में शादी या अन्य विशेष मौकों पर भोज के लिए वन्यजीवों का मांस पकाया जाता है।
डीएफओ राजीव मिश्रा ने बताया कि अमिरिती गांव के गजराज कोल, रंजन कोल, राजेश मवासी व ज्वाला सतनामी को पकड़ा गया है। गजराज ने बताया कि उसके घर पर बेटी की शादी थी, इसलिए भोज में सांभर, चीतल और जंगली सूअर की दावत की तैयारी थी। मेहमानों के बीच किसी भी शाकाहारी वन्य प्राणी का मांस परोसने की इच्छा में बाघ का शिकार हो गया। बताया कि तकरीबन रात साढ़े आठ बजे डुडहा नाले के घाट पर करंट लगाया था। साढ़े 11 बजे उन सभी के होश उड़ गए जब करंट लगने पर बाघ ने दहाड़ लगाई। डर से सभी मौके से भाग गए थे।
ऐसे करते हैं शिकार
जंगल में वन्य जीवों का शिकार करंट फैला कर शिकारी करते हैं। इसके लिए बिजली के नंगे तारों का इस्तेमाल किया जाता है। करंट फैलाने के लिए शिकारी कम से कम एक से डेढ़ फीट ऊंची खूटियां काफी दूरी में लगाते हैं। उन्हीं में तार फंसा कर उसके दूसरे सिरे को कटिया की शक्ल में बिजली की लाइनों से जोड़ दिया जाता है। ज्यादातर पास गुजरी बिजली लाइनों का इस्तेमाल होता है लेकिन, कई बार यह दायरा चार से पांच किलोमीटर दूर गुजरी लाइन तक पहुंच जाता है।
सरभंग आश्रम के पास हुआ था बाघ का जन्म
सरभंग आश्रम के पास दुधमनी जंगल में मारे गए किशोर बाघ की कहानी भी अजीब है। सतना डीएफओ राजीव मिश्रा ने बताया कि मारा गया किशोर बाघ पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन का शावक था। करीब चार साल पहले पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन अपनी मां की टेरीटरी (क्षेत्र) छोड़कर सरभंग आश्रम पहुंची थी। इसके बाद वह उत्तर प्रदश के रानीपुर वन्य जीव विहार तक गई। वहां से घूमते हुए सरभंग जंगल में स्थाई टेरीटरी बना ली थी।