उत्तर कोरियाई शरणार्थी के बेटे और सुधारवादी नेता मून सत्ता की कमान संभालने के बाद सबसे पहले उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के साथ बातचीत शुरू करेंगे. बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति पार्क गून हे ने उत्तर कोरिया से सारे रिश्ते खत्म कर लिए थे. साथ ही उत्तर कोरिया पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. मार्च में पार्क गून-हे को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था, जिसके बाद मून जाए-इन की जीत सामने आई है. यह जीत कोरियाई प्रायद्वीप में अमेरिकी दखल को खत्म करने की दिशा में अहम मानी जा रही है. उत्तर कोरिया से बेहतर रिश्ते बनाने के पक्षधर मून अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान की तारीफ भी कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम से मुलाकात करने की बात कही थी.
अमेरिका विरोधी पार्टी के नेता हैं मून
मून के आने के बाद से अमेरिका की टेंशन भी बढ़ गई है. शायद यही वजह रही कि उत्तर कोरिया के साथ तनाव के बीच पार्क ग्यून-हे की बर्खास्तगी के फौरन बाद अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने दक्षिण कोरिया का दौरा किया. मून की पार्टी को अमेरिका विरोधी माना जाता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता मून खुद अमेरिका के कड़े आलोचक हैं. ऐसे में उनके सामने दक्षिण कोरिया में अमेरिकी दखल को रोकने की भी बड़ी चुनौती है. अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में थाड एंटी-मिसाइल सिस्टम तैनात कर रखा है, जिसको लेकर काफी विवाद चल रहा है. मून भी इसकी आलोचना कर चुके हैं. उत्तर कोरिया की ओर से परमाणु और मिसाइल परीक्षण करने के चलते अमेरिका के साथ तनाव भी बढ़ गया है. कोरियाई प्रायद्वीप में युद्ध के हालात बने हुए है.
अमेरिका को सबक सिखाने के मूड में उत्तर कोरिया
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की हत्या करने की कोशिश कर चुकी है, जिससे बौखलाए उत्तर कोरिया ने अमेरिका को सबक सिखाने की ठान रखी है. ऐसे में यह जीत उत्तर कोरिया के पक्ष में मानी जा रही है. हालांकि अगर युद्ध हुआ, तो अमेरिका से ज्यादा कोरियाई देशों को नुकसान उठाना पड़ेगा. ऐसे में तनाव को खत्म करना मून के लिए बड़ी चुनौती है.
ट्रंप की स्पष्ट नीति नहीं
हकीकत यह भी है कि दोनों कोरियाई देशों को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कोई अपनी स्पष्ट नीति नहीं है. हालांकि दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका के सैन्य संबंध मजबूर माने जाते हैं, लेकिन इस जीत से यह नजरिया भी कमजोर होता दिख रहा है. दरअसल, अमेरिका ईरान की तरह उत्तर कोरिया के भी परमाणु कार्यक्रम को रोकने की कोशिश कर रहा है और उसको वार्ता की बेंच पर लाना चाहता है, जो संभव नहीं है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अमेरिकी प्रतिबंध के चलते ईरान को अमेरिका के सामने झुकना पड़ा था, जिसकी वजह यह थी कि उसके पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, लेकिन उत्तर कोरिया के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है. तानाशाह किम जोंग उन अमेरिका की कूटनीति से पूरी तरह वाकिफ हैं.
धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की भी चुनौती
उत्तर कोरियाई शरणार्थी के बेटे मून के सामने दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना, भ्रष्टाचार का खात्मा करना और बेरोजगारी की समस्या से निपटना जैसी चुनौतियां हैं. हाल ही के दिनों में दक्षिण कोरिया में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ा है. पार्क गून-हे खुद भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं. इसके अलावा दक्षिण कोरिया एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसके सामने अब रोजगार पैदा करने की समस्या बढ़ी है. देश के 10 फीसदी युवा बेरोजगारी से जूझ रहे है. 1960 में दक्षिण कोरिया सबसे गरीब देश माना जाता था, लेकिन हाल ही में उसने काफी तरक्की की.