हाथरस के चंदपा की बिटिया ने भले ही सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली में अंतिम सांस ली हो, लेकिन उसकी सांसों की डोर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जेएन मेडिकल कॉलेज में ही टूटने लगी थी। तबीयत बिगड़ने के बावजूद उसे आठ दिनों तक वेंटिलेटर पर नहीं रखा गया। ऐसा आरोप बिटिया के चचेरे भाई ने लगाया है।

14 सितंबर को गांव के ही चार युवकों ने बिटिया के साथ दरिंदगी की थी। जिससे उसके गर्दन व रीढ़ में गंभीर चोट लगी थी। सुबह 11 बजे उसे हाथरस के जिला अस्पताल लाया गया, जहां से अलीगढ़ के लिए रेफर कर दिया गया।
परिजन बिटिया को जेएन मेडिकल कॉलेज ले आए। 22 सितंबर तक सामान्य तरीके से बिटिया का इलाज होता रहा, जबकि उसकी हालत काफी गंभीर थी। 23 सितंबर को बिटिया को वेंटिलेटर मिला। अलबत्ता, उसकी हालत में लगातार गिरावट आ रही थी। उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी टूटी और जीभ कटी हुई थी।
बिटिया के चचेरे भाई ने कहा कि बहन को वेंटिलेटर समय पर मिल गया होता तो उसकी हालत में सुधार हो रहा होता। बहरहाल, बिटिया की गंभीर हालत को देखते हुए 28 सितंबर को दिल्ली रेफर कर दिया गया।
मगर, उसे एम्स के बजाय सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया, जहां उसने 29 सितंबर को अंतिम सांस ली। कांग्रेस नेता इंजी. आगा यूनुस ने कहा कि बिटिया को बेहतर इलाज मिल गया होता तो वह आज हमारे बीच होती।
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