जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में अब जैव संसाधनों के संरक्षण की मुहिम रफ्तार पकड़ेगी। प्रदेश के सभी नगर व ग्रामीण निकायों में जैव विविधता अधिनियम के तहत जैव विविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी) के अस्तित्व में आने के मद्देनजर अब इन्हें सक्रिय किया जाएगा। इस सिलसिले में उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड कार्ययोजना तैयार करने में जुट गया है।
उत्तराखंड की सभी 7791 ग्राम पंचायतों, 95 क्षेत्र पंचायतों और 13 जिला पंचायतों के साथ ही आठ नगर निगमों, 43 नगर पालिका परिषदों व 41 नगर पंचायतों में बीएमसी का गठन हो चुका है। इसके साथ ही सभी बीएमसी में पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर यानी पीबीआर भी तैयार किए जा चुके हैं। पीबीआर में प्रत्येक बीएमसी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में उपलब्ध जैव संसाधनों का ब्योरा, इनका व्यवसायिक उपयोग करने वाली कंपनियां, संस्थाएं व व्यक्तियों के बारे में ब्योरा अंकित है।
इसके साथ ही क्षेत्र में पाई जाने वाली अन्य नई प्रजातियों का ब्योरा भी दर्ज किया जा रहा है। यानी पीबीआर अपडेट भी किए जा रहे हैं। अब इन सभी बीएमसी को सक्रिय करने पर खास फोकस किया जा रहा है। असल में बीएमसी का दायित्व अपने क्षेत्र के जैव संसाधनों का संरक्षण करने के साथ ही उन कंपनियों, व्यक्तियों व संस्थाओं पर भी नजर रखना है, जो यहां के जैव संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग कर रहे हैं। उन्हें इस तरह से कदम उठाने हैं कि जैव संसाधनों का अंधाधुंध दोहन न हो और इनका संरक्षण भी होता रहे। जैव विविधता बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार बीएमसी को सक्रिय करने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। कोरोना संक्रमण के मद्देनजर परिस्थितियां सामान्य होने पर इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे।
बीएमसी के लिए लाभांश का प्रविधानजैव विविधता अधिनियम में तय प्रविधानों के तहत यहां के जैव संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग करने वाली कंपनियों, व्यक्तियों व संस्थाओं को अपने सालाना लाभांश में से 0.5 फीसद से तीन फीसद तक हिस्सेदारी बीएमसी को देनी अनिवार्य है। कई कंपनियां बीएमसी को दी जाने वाली हिस्सेदारी बोर्ड में जमा भी करा रही हैं। यह राशि पांच करोड़ से अधिक हो चुकी है। अब इसे भी बीएमसी को वितरित करने की तैयारी है।