अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन अपने प्रशासन में 20 भारतीय-अमेरिकियों को जगह देकर यह संकेत दिया है कि उनके साथ भारत-अमेरिका के साथ संबंध बेहतर रहेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पूर्व में किसी राष्ट्रपति ने इतनी अधिक संख्या में भारतीय-अमेरिकियों को नामित किया है। बाइडन प्रशासन के अहम पदों पर 20 भारतीय अमेरिकियों को नामित किया गया है। इनमें कम से कम 17 भारतीय शक्तिशाली व्हाइट हाउस में अहम पद संभालेंगे। बाइडन प्रशासन में अहम पदों पर 13 महिलाएं भी शामिल हैं। इन भारतीयों को बाइडन प्रशासन में जगह मिलने से भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा। इसके क्या राजनीतिक निहितार्थ हैं। आखिर क्या है इस पर विशेषज्ञों की राय।
बाइडन प्रशासन में 20 भारतीयों को शामिल होने के निहितार्थ
हालांकि, प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि यह तय है बाइडन प्रशासन में वित्त प्रबंधन से लेकर स्वास्थ्य, कानून, विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में भारतीयों का दबदबा कायम हो गया है। उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन ने भारतीयों को अधिक जगह मिलना इस बात के संकेत हैं कि वह अपनी नई मातृभूमि (अमेरिका) के लिए कितना अच्छा काम किया है। यह उन लोगों की अपनी नई मातृभूमि के प्रति निष्ठा के प्रमाण है। यह उनके शैक्षिक स्तर, राजनीतिक जुड़ाव और भारत-अमेरिका के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों का एक प्रतिबिंब है। उन्होंने कहा कि खास बात यह है कि इन नियुक्तियों को लेकर अमेरिका में किसी ने भी विरोध नहीं किया। लेकिन भारत को इन भारतीयों पर गर्व करते समय यह याद रखना होगा कि अब वह अमेरिकी नागरिक हैं। उनकी पहली वफादारी और निष्ठा अमेरिका को लेकर होगी। अमेरिकी हितों को लेकर उनकी दिलचस्पी होगी। अमेरिकी संविधान के प्रति उनकी निष्ठा होगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिकी संबंधों को समझने ये भारतीय अधिक कारक होंगे। आज जिस तरह का अतंरराष्ट्रीय परिदृष्य है उसमें भारत और अमेरिका के संबंध मधुर ही रहेंगे।
कश्मीर और 370 अनुच्छेद पर होगी नजर
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कश्मीर और मानवााधिकार मुद्दे पर अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन और कमला हैरिस का क्या स्टैंड होता है ? क्या भारत अमेरिकी संबंधों पर इसका असर पड़ेगा। कश्मीर और मानवाधिकार मुद्दे पर क्या होगा बाइडन-हैरिस का रुख। कमला हैरिस भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत संबंधों के लिए जानी जाती है। हालांकि, जब भारत ने 370 अनुच्छेद का संशोधन किया था उस वक्त ट्रंप प्रशासन मौन था, लेकिन कमला हैरिस के बयान से भारत को असुविधा हुई थी। हैरिस ने भारत की निंदा की थी। 29 अक्टूबर, 2019 को हैरिस ने कहा था कि हमें कश्मीरियों को याद दिलाना होगा कि वे दुनिया में अकेले नहीं है। उन्होंने कहा था कि हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। अगर स्थिति बदली तो हस्तक्षेप करने की जरूरत पड़ेगी। उस वक्त भारत ने कहा था कि यह भारत का आंतरिक मामला है, लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बाइडन प्रशासन भारत की असल चिंता समझने को तैयार होता है या नहीं।
पिछले दो दशकों में मजबूत हुए भारत-अमेरिका संबंध
प्रो. पंत का कहना है कि भारत-अमेरिका के संबंधों ने पिछले दो दशकों में एक रणनीतिक गहराई हासिल की है। दोनों देशों के बीच निकटता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों का सत्ता परिवर्तन से बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। उन्होंने कहा दोनों देशों के बीच कई मसलों पर मतभेद हो सकते हैं और होते भी रहेंगे, लेकिन इसका भारतीय हितों पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेद दूर करने का बेहतरीन मैकेनिज्म है। प्रो पंत ने जोर देकर कहा कि इसके पूर्व भी कश्मीर को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने सवाल उठाए हैं, लेकिन इसका दोनों देशों के संबंधों पर असर नहीं पड़ा है। आपसी रिश्ते मजबूत हुए हैं।
रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों से मधुर रहे रिश्ते
पंत ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से भारत-अमेरिका के रिश्ते मजबूत हुए हैं। अलबत्ता किसी भी राजनीतिक दल का राष्ट्रपति रहा हो। उन्होंने कहा कि बिल क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। उनकी छह दिवसीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच मधुर संबंध बने। किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की ये भारत की सबसे लंबी यात्रा थी। यह भारत-अमेरिका के संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में भी दोनों देशों के रिश्ते प्रगाढ़ हुए। बुश रिपब्लिकन पार्टी से थे। बुश की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से दोनों देशों के बीच रणनीतिक गहराई प्रदान की। बुश रिपब्लिकन पार्टी से थे। इसी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबाम के कार्यकाल में भी दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ हुए। उन्होंने भारत की दो यात्राएं की थीं।