उत्तराखंड के चमोली में जो कुछ 7 फरवरी 2021 को हुआ उसने एक बार फिर से इस राज्य में आई 2013 की आपदा की याद दिला दी। हालांकि इस बार जो घटना घटी है वो 2013 के मुकाबले काफी छोटी है। वैज्ञानिकों की भाषा में इसको ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लट या ग्लोफ कहते हैं। ये स्थिति तब होती है जब ग्लेशियर टूटकर एक विनाशकारी बाढ़ का रूप ले लेता है। इस दौरान पानी में ग्लेशियर की बर्फ की मात्रा काफी अधिक होती है जो पानी के साथ बह जाती है।
कई बार तरह की घटना से एक झील का भी निर्माण हो जाता है, जिसको मार्जिनल लेक और सबमार्जिनल लेक कहा जाता है। लेकिन जब सबमार्जिनल लेक टूटती है तो इसको मार्जिनल लेक बर्स्ट कहा जाता है। उत्तराखंड में वर्ष 2013 में आई विनाशकारी आपदा की वजह इसी तरह की एक झील बनी थी। सब मार्जिनल लेक के बर्स्ट होने की घटना को वैज्ञानिक जोकुलोप (Jokulhlaup) कहते हैं। इसमें ग्लेशियर द्वारा पानी में बहा कर लाया गया मोराइन या मलबा अधिक होता है। पानी में बने जबरदस्त दबाव की वजह से ये एक एवलांच का रूप ले लेता है और इसमें भारी पत्थर, चट्टान और बर्फ के बड़े टुकडे़ बह जाते हैं। इस तरह की घटना में हल्के भूकंप का भी अहसास होता है।
जोकुलोप आइसलैंडिक शब्द है जिसको इंग्लिश भाषा से लिया गया है। इसकी शुरुआत Vatnajokull आइसलैंड (दुनिया का सबसे बड़ा आइसलैंड) से हुई थी, जो एक ज्वालामुखी के फटने से बना था। लेकिन बाद में इसको हर तरह के सब ग्लेशियर बर्स्ट से जोड़ दिया गया। ग्लेशियर लेक में पानी का स्तर हजारों क्यूबिक मीटर से लेकर लाखों क्यूबिक मीटर तक हो सकता है। टूटने पर इससे 15 हजार क्यूबिक मीटर प्रति सैकेंड की रफ्तार से पानी बह सकता है। ये वी आकार की घाटियों का निर्माण करता है, जो 50 मीटर तक गहरी हो सकती हैं।
ग्लेशियर के टूटने से पानी के साथ जो मलबा आता है उसकी वजह से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक एशिया समेत दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कुछ ग्लेशियर्स को बेहद खतरनाक श्रेणी में रखा गया है। 1929 में करोकोरम के ऊपर बने चोंग खुमदान ग्लेशियर के टूटने की वजह से सिंधु नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया था। भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, भूटान और तिब्बत के क्षेत्र में भी ग्लोफ की आशंका काफी प्रबल होती है।