लगातार कई घंटों तक काम करने या फिर चलने-फिरने के दौरान सही शारीरिक मुद्रा बनाई रखी जाए तो अनेक तरह की शारीरिक परेशानियों और कमर दर्द से बचा जा सकता है। कैसे आइए जानते हैं एक्सपर्ट्स से…
आरामतलब जीवनशैली, लैपटॉप पर झुककर काम करने और गलत मुद्रा में घंटों बैठे रहने से कमर और पीठ दर्द की समस्या बहुत आम हो गई है। महामारी के दौर में घर से काम करने के दौरान यह समस्या और भी बढ़ी है। शिथिलता भरी जीवनशैली और अपर्याप्त शारीरिक गतिविधियों के कारण मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। यहां तक कि घर में सोफे पर या बिस्तर में बैठ कर पढ़ने से बच्चों के लिगामेंट्स में खिंचाव आ जाता है। दरअसल, पीठ और गर्दन, दोनों ही रीढ़ की हड्डी का हिस्सा होते हैं। इसमें होने वाले दर्द के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं।
अगर आप देखें, तो रीढ़ में बहुत छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं, जिन्हें वर्टिब्रा कहते हैं। गर्दन में यह सात और पीठ में 12, कमर में पांच होती हैं। निचले हिस्से में इनकी संख्या नौ हो जाती है। हड्डियां एक सुरक्षित गलियारा बनाती हैं, जिसमें स्पाइन कार्ड नीचे होता है। इसमें हर स्तर पर तंत्रिकाएं निकलती हैं। दो हड्डियों के बीच में डिस्क होती है। इन सबको मांसपेशियां और लिगामेंट्स सपोर्ट करते हैं। शरीर की कार्यप्रणाली को बेहतर रखने के लिए इन सभी का स्वस्थ और मजबूत रहना आवश्यक है।
शारीरिक शिथिलता है बड़ा कारण
पहले हमारी जीवनशैली में व्यायाम होता रहता था। खेतों में काम करते हुए या घरेलू जानवरों की देखभाल करते हुए हम काफी शारीरिक श्रम करते थे। वहीं घरों में महिलाओं को भी काफी श्रम करना पड़ता था। जीवनशैली में व्यायाम होने से मांसपेशियां मजबूत रहती थीं। अब हमारी जीवनशैली बदल चुकी है। कार या अन्य वाहन से कार्यस्थल गए, दिनभर बैठे रहे, शाम को आकर टीवी देखने बैठ गए। एक तो, दिनचर्या में शारीरिक शिथिलता, दूसरा बैठने की हमारी मुद्रा गलत रही। समस्या यहीं से शुरू होती है। इंसान जब चार पैरों से उठकर दो पैरों पर खड़ा हुआ, तो मांसपेशियों पर दबाव बढ़ा। मजबूत मांसपेशियां ही मानव को दो पैरों पर खड़ा होने में समर्थ बना सकीं। ऐसे में अगर हमारी मांसपेशियां ही कमजोर होंगी, तो वे शरीर का समुचित तरीके से साथ नहीं दे पाएंगी। इससे हल्की चोट या व्यवधान से भी शरीर को बड़ा नुकसान हो सकता है।
जरूरी है स्पाइन को स्वस्थ रखना
स्पाइन में जो हड्डियां होती हैं, वे उम्र के साथ बढ़ती हैं। इसमें कैल्शियम और प्रोटीन जमा होता है। लगभग 25 साल की उम्र तक पीक बोन मास आता है, यानी हड्डियां पूरी तरह से विकसित होती हैं। जब बच्चों की ऊंचाई बढ़ रही होती है, तो उस समय अगर उन्हें प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में न मिले, तो उनकी शारीरिक संरचना कमजोर हो जाती है। इसी तरह, ब्रेस्टफीड करानेवाली महिलाओं को भी पर्याप्त कैल्शियम-प्रोटीन मिलना चाहिए।
ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम
शरीर में कैल्शियम और प्रोटीन की कमी होने, खासकर गर्भकाल के दौरान महिलाओं को इसकी पर्याप्त मात्रा नहीं मिलने या जब माहवारी रुक जाए, तो उस समय इन पोषक तत्वों की कमी होने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है। हड्डियों में खनिजों की मात्रा कम होने और अस्थि द्रव्यमान में गिरावट होने से समस्याएं बढ़ती हैं। इससे भी ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका रहती है। इस बीमारी में हड़्डियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे उनके टूटने का डर बढ़ जाता है।
क्यों आती है मोच और दर्द की समस्या
- लिगामेंट का स्ट्रेन होने से
- हड्डियों में किसी प्रकार के संक्रमण से ट्यूमर होने से
- नसों से जुड़ी कोई समस्या होने से
- स्पाइनल कॉर्ड में समस्या होने से
दर्द से घबराएं नहीं
अगर बीमारी का कोई गंभीर लक्षण नहीं दिख रहा है, तो जरूरी नहीं है कि आप सीधे डॉक्टर के पास जाएं। जैसे कि सर्दी जुकाम के लिए सीधे डॉक्टर के पास नहीं पहुंचते, उसी तरह से इसे लेकर भी अधिक घबराना नहीं चाहिए। कुछ जरूरी उपायों से इसे खुद ही ठीक कर सकते हैं।
लें विशेषज्ञ से परामर्श
- अगर दर्द के साथ बुखार आए।
- गर्दन से दर्द हाथों या पैरों में फैलने लगे।
- गर्दन या पीठ दर्द से वजन में गिरावट आने लगे।
- आराम की मुद्रा में भी लगातार दर्द महसूस हो।
- हाथों-पैरों में कमजोरी महसूस होने लगे।
सामान्य दर्द में उपाय
- अगर उक्त लक्षण नहीं हैं, तो दर्द से छुटकारे के लिए कुछ आसान उपाय किये जा सकते हैं :
- हल्की गर्म सिंकाई करें।
- मलहम, जो उपयुक्त हो।
- सूजन कम करने के लिए एंटी-इन्फ्लेमेटरी जेल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- आवश्यकता महसूस होने पर फिजियोथेरेपी की मदद ली जा सकती है।
दर्द का नहीं, बीमारी का इलाज जरूरी
अगर सिर्फ दर्द का इलाज कर रहे हैं और उसके पीछे कारण को नहीं पकड़ते हैं, तो समस्या बनी रहेगी। अक्सर कमजोर मांसपेशी और गलत शारीरिक मुद्रा के कारण दर्द की समस्या होती है। लेकिन, किसी तरह का संक्रमण है, बुखार आ रहा है या फिर सूजन का दर्द है, तो सूजन और दर्द में राहत पाने के साथ-साथ उसका इलाज कराना भी जरूरी है।
रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) कैसे रहे स्वस्थ
- हड्डियों की मजबूती के लिए सेहतपूर्ण भोजन करें।
- मांसपेशियों की मजबूती के लिए नियमित श्रम करें।
- बैठने, सोने और खड़े होने की मुद्रा सही हो।
- मानसिक तौर पर भी स्वस्थ रहना जरूरी है। मानसिक रूप से कमजोर होने पर दर्द बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो जाती है। लंबे समय तक दर्द बने रहने से लोग एक तरह से मनोवैज्ञानिक दबाव की स्थिति में आ जाते हैं। ऐसे में जरूरी है आप मानसिक तौर पर स्वस्थ रहें।
खानपान में आवश्यक
- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम आदि की सही और संतुलित मात्रा।
- विटमिन बी12 जैसे कुछ जरूरी विटमिन।
- हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल।
ऐसे मजबूत करें मांसपेशियां
- कंडीशनिंग एक्सरसाइज करें।
- सुबह की सैर, ट्रेडमिल, स्पोर्ट्स एयरोबिक्स, स्विमिंग।
- स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं। हालांकि, जरूरी नहीं सबको एक ही तरह का व्यायाम भाए।
- अगर कोई व्यायाम करते समय दर्द महसूस होता है, तो उसे न करें।
स्पाइनल इंजरी होने पर क्या करें
अगर रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाये, तो शुरुआती कुछ घंटे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसका घटनास्थल पर ही प्राथमिक उपचार होना जरूरी है। दुर्घटना की स्थिति में कई बार बचाव के दौरान रीढ़ की चोट और बढ़ जाती है। इसे देखते हुए मरीज को स्थिर रखने की बड़ी चुनौती होती है, ताकि उपचार और सुधार की अधिकतम गुंजाइश रहे। घटनास्थल के बाद नजदीकी अस्पताल में प्राथमिक उपचार मिले, ताकि मरीज की हालत को स्थित किया जा सके। इसके बाद स्पाइन के विशेषज्ञ डाक्टर और अस्पताल में उपचार होना चाहिए।