भारत के राज्य गुजरात में अरब सागर से 100 किलोमीटर दूर बंजर रेगिस्तान में बर्फ की तरह सफेद नमक का मैदान है, जो की उत्तर में पाकिस्तान के साथ लगती सरहद तक फैला हुआ है. इसे कच्छ के रण के नाम से भी जाना जाता है. कछुए के आकार का यह इलाका दो हिस्सों में बंटा है- महान या बड़ा रण 18,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. दूसरा हिस्सा छोटा रण कहलाता है जो 5,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इन दोनों को मिला दें तो नमक और ऊंची घास का विस्तृत मैदान बनता है जो दुनिया के सबसे बड़े नमक के रेगिस्तानों में से एक है. यहीं से भारत को 75 फीसदी नमक मिलता है. हर साल गर्मियों के महीने में मॉनसून की बारिश होने पर रण में बाढ़ आ जाती है. सफेद नमक के सूखे मैदान बिल्कुल गायब हो जाते हैं और उनकी जगह झिलमिलाता समुद्र बन जाता है. कच्छ के दोनों रण भारत की पश्चिमी सीमा पर कच्छ की खाड़ी और दक्षिणी पाकिस्तान में सिंधु नदी के मुहाने के बीच स्थित हैं. बड़ा रण भुज शहर से करीब 100 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है. इसे भारत का अंतहीन ‘सफे़द रेगिस्तान’ कहा जाता है. इसमें वन्य जीवन न के बराबर है. छोटा रण बड़े रण के दक्षिण-पूर्व में है. यह आप्रवासी पक्षियों और वन्य जीवों के लिए अभयारण्य की तरह है. इसके बावजूद दोनों रण में बहुत समानताएं हैं.
जून के आखिर में यहां मॉनसून की मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. अक्टूबर तक यहां बाढ़ के हालात रहते हैं. फिर धीरे-धीरे पानी भाप बनकर उड़ने लगता है और अपने पीछे नमक के क्रिस्टल छोड़ जाता है. पानी घटने पर प्रवासी किसान चौकोर खेत बनाकर नमक की खेती शुरू करते हैं. सर्दियों से लेकर अगले जून तक वे जितना ज्यादा नमक निकाल सकते हैं, उतना नमक निकालते हैं. कच्छ के रण की भूगर्भीय उत्पत्ति करीब 20 करोड़ साल पहले पूर्व-जुरासिक और जुरासिक काल में शुरू हुई थी. कई सदी पहले तक यहां समुद्री मार्ग था. कच्छ की खाड़ी और सिंधु नदी में ऊपर की ओर जाने वाले जहाज इस रास्ते का प्रयोग करते थे. दुनिया की पहली सबसे बड़ी सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी सभ्यता के लोग ईसा पूर्व 3300 से लेकर ईसा पूर्व 1300 साल तक यहां फले-फूले थे. करीब 200 साल पहले एक के बाद एक आए कई भीषण भूकंपों ने यहां की भौगोलिक आकृति को बदल दिया. भूकंप के झटकों ने यहां की जमीन को ऊपर उठा दिया. यहां समुद्री पानी से भरी खाइयों की श्रृंखला बन गई जो साथ मिलकर 90 किलोमीटर लंबे और 3 मीटर गहरे रिज का निर्माण करती थी. अरब सागर से इसका संपर्क कट गया.
बता दें की भूकंपों ने यहां के रेगिस्तान में खारे पानी को फंसा दिया जिससे रण की विशिष्ट भू-स्थलाकृति तैयार हुई. गुजरात के क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ यूनिवर्सिटी के भूगर्भ-वैज्ञानिक डॉ एमजी ठक्कर कहते हैं, “रेगिस्तान में हमें एक जहाज का मस्तूल मिला था. वह एक भूकंप के दौरान यहां फंस गया था और समुद्र तक नहीं पहुंच पाया था.” “वह अद्भुत दृश्य था. बंजर रेगिस्तान के बीच में लकड़ी का मस्तूल.” पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात सरकार स्थानीय, कुटीर हस्तशिल्प उद्यमों को वित्तीय सहायता देती है. कच्छ क्षेत्र में रहने वाले खानाबदोश समुदायों की कला और उनका शिल्प पूरे भारत में मशहूर है. असल में कच्छ के रण में तैयार होने वाले प्रिंटेड कपड़ों की कई शैलियां दूसरी जगहों से विलुप्त हो रही हैं. इनमें शामिल हैं- बाटिक ब्लॉक प्रिंटिंग, प्राकृतिक रंगों वाली बेला प्रिंटिंग और अरंडी तेल वाली रोगन प्रिंटिंग. राज्य सरकार हस्तशिल्प को वार्षिक रण उत्सव का हिस्सा बनाकर बढ़ावा दे रही है. नवंबर से फरवरी तक चलने वाले सालाना उत्सव में संगीत, नृत्य, शिल्प और स्थानीय संस्कृति की झलक दिखती है.