धन्वंतरि आयुर्वेद के भगवान माने जाते हैं। इस दिवस पर गणेश-लक्ष्मी को घर लाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन कोई किसी को उधार नहीं देता है। इसलिए सभी चीजें नगद में क्रय करके लाई जाती हैं। इस दिन लक्ष्मी तथा कुबेर की उपासना के साथ-साथ यमराज की भी आराधना की जाती है। पूरे साल में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की उपासना की जाती है। यह उपासना दिन में नहीं की जाती, अपितु रात होते वक़्त यमराज के निमित्त एक दीया जलाया जाता है। धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन की खास अहमियत है। शास्त्रों में इस बारे में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती।

धनतेरस के दिन चांदी क्रय करने की भी प्रथा है। यदि संभव न हो तो कोई बर्तन क्रय करें। इसकी यह वजह मनाई जाती है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है तथा मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है, वह स्वस्थ है सुखी है तथा वही सबसे धनवान है। साथ ही घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से शुरू हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, रंगोली बनाकर सांझ के वक़्त दीया जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है।
साथ ही इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना एवं नए बर्तन क्रय करना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन क्रय करने से तो सर्वाधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशालाएं, कुआं, बावली, मंदिर आदि जगहों पर तीन दिन तक दीये जलाना चाहिए। इस दिन यम के लिए आटे का दीया बनाकर घर के मुख्यद्वार पर रखा जाता है। इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीया कहा जाता है।
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