उच्च न्यायालय ने बुधवार को राजधानी के कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और जलभराव के मुद्दे के समाधान में विफलता के लिए नगर निकाय के अधिकारियों की खिंचाई की। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि दिल्ली में जल निकासी व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है, सीवेज लाइनें टूटी हुई हैं और एक बार जब बारिश का पानी सीवेज प्रणाली में मिल जाता है, तो इसका उल्टा प्रवाह होता है।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बिल्कुल दयनीय है। इन एजेंसियों को जागना होगा। हर मानसून में आप मिंटो रोड की मशहूर तस्वीर देखते हैं जिसमें बस डूबी हुई है। लोग अदालत तक पहुंचने के लिए अपने घरों से बाहर भी नहीं निकल सकते। ऐसा नई दिल्ली इलाके में हो रहा है। हममें से कुछ लोग शिकायत कर रहे है कि शाकाहारी होने के बावजूद हमें अपने घरों में मछलियां मिलती हैं।
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि शहर की सीवेज और जल निकासी व्यवस्था की देखभाल के लिए एक सामान्य योजना और एक एजेंसी होनी चाहिए। उन्होंने कहा आपके पास कई एजेंसियां हैं लेकिन उनमें से कोई भी काम नहीं कर रही है। इस सीवेज सिस्टम की देखभाल एक एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए, आपके सफाई कर्मचारी क्या कर रहे हैं। वे सारा कचरा सीवेज पाइपों में डाल देते हैं। ये पाइप जाम हो जाते हैं और फिर आप सीवेज पाइपों को साफ करने के लिए ठेकेदारों को नियुक्त करते हैं।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने पुराना किला रोड पर एक घर का जिक्र किया जहां हर साल बाढ़ आती है। उन्होंने कहा कि पिछले साल भी छह फीट पानी था और एक सांप भी परिसर में घुस गया था। यह नई दिल्ली क्षेत्र में अधिकारियों की संवेदनहीनता है। हम शहर के बाहरी इलाकों के बारे में क्या कह सकते हैं?कोर्ट ने दिल्ली में जलभराव और बाढ़ जैसी स्थिति से संबंधित स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सख्त टिप्पणी की।जनहित याचिका 2018 में कई मीडिया रिपोर्टों के आधार पर शुरू की गई थी।
सुनवाई के दौरान लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की ओर से पेश वकील ने पीठ से मामले से निपटने के लिए एक समिति गठित करने के निर्देश पारित करने को कहा।पीठ ने वकील से यह पता लगाने को कहा कि जल निकासी और सीवेज प्रणाली से निपटने में कितनी सरकारी एजेंसियां शामिल हैं, जिसके बाद वह आदेश पारित करेगी।