जय हो बाबा जगन्नाथ जी की: खुशखबरी 23 जून से शुरु होगी भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा

कोरोना वायरस के चलते देश में अब लॉकडाउन में ढ़ील देते हुए अनलॉक1.0 चल रहा है। इसी के चलते अब देश में धीरे-धीरे सभी प्रतिष्ठान खोले जा रहे हैं।

8 जून से देश के सभी धार्मिक स्थलों को खोलने की प्रकिया आरंभ हो जाएगी। इन सबके बीच 23 जून से विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ का रथ यात्रा शुरू होगी। जिसकी तैयारियां चल रही हैं।

शुक्रवार, 5 जून को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से पहले स्नान की प्रक्रिया की गई। जिसमें मंदिर के गर्भ गृह से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को निकालकर 108 घड़ों के सुगंधित जल से स्नान कराया गया।

इसके बाद भगवान 17 दिनों के लिए एकांतवास यानी क्वारैंटाइन में रहेंगे। इस दौरान उन्हें काढ़ा पिलाया जाएगा साथ ही अलग-अलग औषधियों से उनका इलाज किया जाएगा।

दरअसल ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर ज्यादा पानी से स्नान के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं। जिसमें उन्हें खांसी, हलका बुखार और जुखाम हो जाता है।

इसी कारण से उन्हें 17 दिनों तक क्वारैंटाइन में रखकर उनका इलाज किया जाता है। इसके बाद आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है।

भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही इसी तिथि पर खुलता है। कुंए से पानी निकालकर दोबारा उसे बंद कर दिया जाता है।

प्रत्येक वर्ष भगवान जगन्नाथ सहित बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से ही बनाई जाती है। इसमें रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है।

भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। वहीं उनके भाई-बहन का रंग गोरा होने के कारण उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।

तीनों के रथ का निर्माण और आकार अलग-अलग होता है। रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ अन्य रथों कि तुलना में बड़ा होता है और रंग लाल पीला होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है जिसकी ऊंचाई 45.6 फुट होती है। बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और उंचाई 45 फुट होती है वहीं सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है।

अक्षय तृतीया से नए रथों का निर्माण आरंभ हो जाता है। प्रतिवर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है। इन रथों को बनाने में किसी भी प्रकार के कील या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता।

 

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