खुद को सशक्त बनाने के लिए चीन इन दिनों दो तरफा तैयारी में जुटा है। यह एक ऐसे लेजर युक्त सैटेलाइट पर काम कर रहा है जो अंतरिक्ष और महासागर दोनों के लिए काम करेगी। इसके जरिए चीन का उद्देश्य महासागर में होने वाली हर हरकत पर निगरानी रखना और प्रतिद्वंद्वी देशों के नौसैनिक बलों की पनडुब्बियों पर हमला करना है। इस प्रोजेक्ट को गुएंलेन नाम दिया है जिसका मंदारिन भाषा में अर्थ है बड़ी लहरें देखना। ये प्रोजेक्ट भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि चीन वह ताकतवर पड़ोसी है जिसके साथ उत्तर में तीन हजार किलोमीटर की सीमा साझा होती है। अब इसकी नजरें भारत के आसपास समुद्री क्षेत्र को घेरने की भी हैं। भारत की चिंता पिछले कुछ सालों में चीन ने हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। म्यांमार, श्रीलंका, जिबूती और पाकिस्तान के बाद मालदीव में बढ़ते चीन का प्रभाव भी भारत के लिए एक इशारा है। भारत समुद्र के रास्ते से अधिकांश व्यापार करता है। जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार, मात्रा के आधार पर 95 फीसद और मूल्य के आधार पर 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री परिवहन से होता है। ऐसे में सैटेलाइट और जासूसी विमानों से निगरानी भारत और उन सभी देशों के सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है जिन्हें चीन अपने मजबूत प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है। 500 मी. तक भेदने की क्षमता चीन से पहले अमेरिका और रूस भी महासागर के अंदर पनडुब्‍बी को निशाना बनाने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं हालांकि कोई भी देश पांच सौ मीटर गहराई तक भेदने में सफल नहीं हो सका। अब चीनी वैज्ञानिक रडार तकनीक के साथ इस पर काम कर रहे हैं। आपके बच्‍चे को सहेज कर रखता है ये रोबोट, जानिए कितनी है इसकी कीमत यह भी पढ़ें नासा की कोशिश जारी हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के फंड रिसर्च प्रोजेक्ट में कुछ हद तक सफलता मिली है जिसमें डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी ने एक लेजर डिवाइस तैयार किया। इसे एक जासूसी विमान पर लगाकर महासागर के अंदर 200 मीटर गहराई तक बमबारी की जा सकेगी। हालांकि न्यूनतम गहराई तक जाने में ये भी नाकाफी है। अंतरिक्ष से निगरानी चीन के पायलट नेशनल लेबोरेटरी फॉर मरीन साइंस और टेक्नोलॉजी में इस डिवाइस को तैयार किया जा रहा है। चीनी वैज्ञानिकों ने पिछले साल सरकार को इस तकनीक की जानकारी दी और इस साल मई में सरकारी धन के साथ इस योजना पर काम शुरू हुआ। इसे डिवाइस को विमान के साथ साथ सैटेलाइट पर लगाकर चीन अंतरिक्ष से निगरानी भी कर सकेगा। दक्षिण चीन सागर में फिर दिखी तल्‍खी, चीन ने अमेरिकी जंगी जहाज का रास्ता रोका यह भी पढ़ें बड़ी चुनौती है सटीक निशाना समुद्र की सतह को भेदते हुए 500 मीटर गहराई तक लेजर बमबारी करना कठिन काम है क्योंकि सटीक निशाना, पानी में विचलन नियंत्रित करने जैसी कुछ चुनौतियां भी होंगी। समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर इस डिवाइस के तैयार हो जाने पर महासागर में चीन अन्य देशों से ज्यादा शक्तिशाली बन जाएगा। न सिर्फ सैन्य बल्कि व्यवसायिक और सवारी जहाज के यातायात के लिए भी चुनौती खड़ी हो सकती हैं। चीन वैश्विक तौर पर सभी तरह की समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर के रूप में खुद को मजबूत कर सकता है।

चीन के खतरनाक ‘प्रोजेक्ट गुएंलेन’ ने भारत की बढ़ा दी चिंता, जल्‍द तलाशना होगा उपाय

खुद को सशक्त बनाने के लिए चीन इन दिनों दो तरफा तैयारी में जुटा है। यह एक ऐसे लेजर युक्त सैटेलाइट पर काम कर रहा है जो अंतरिक्ष और महासागर दोनों के लिए काम करेगी। इसके जरिए चीन का उद्देश्य महासागर में होने वाली हर हरकत पर निगरानी रखना और प्रतिद्वंद्वी देशों के नौसैनिक बलों की पनडुब्बियों पर हमला करना है। इस प्रोजेक्ट को गुएंलेन नाम दिया है जिसका मंदारिन भाषा में अर्थ है बड़ी लहरें देखना। ये प्रोजेक्ट भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि चीन वह ताकतवर पड़ोसी है जिसके साथ उत्तर में तीन हजार किलोमीटर की सीमा साझा होती है। अब इसकी नजरें भारत के आसपास समुद्री क्षेत्र को घेरने की भी हैं।खुद को सशक्त बनाने के लिए चीन इन दिनों दो तरफा तैयारी में जुटा है। यह एक ऐसे लेजर युक्त सैटेलाइट पर काम कर रहा है जो अंतरिक्ष और महासागर दोनों के लिए काम करेगी। इसके जरिए चीन का उद्देश्य महासागर में होने वाली हर हरकत पर निगरानी रखना और प्रतिद्वंद्वी देशों के नौसैनिक बलों की पनडुब्बियों पर हमला करना है। इस प्रोजेक्ट को गुएंलेन नाम दिया है जिसका मंदारिन भाषा में अर्थ है बड़ी लहरें देखना। ये प्रोजेक्ट भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि चीन वह ताकतवर पड़ोसी है जिसके साथ उत्तर में तीन हजार किलोमीटर की सीमा साझा होती है। अब इसकी नजरें भारत के आसपास समुद्री क्षेत्र को घेरने की भी हैं। भारत की चिंता पिछले कुछ सालों में चीन ने हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। म्यांमार, श्रीलंका, जिबूती और पाकिस्तान के बाद मालदीव में बढ़ते चीन का प्रभाव भी भारत के लिए एक इशारा है। भारत समुद्र के रास्ते से अधिकांश व्यापार करता है। जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार, मात्रा के आधार पर 95 फीसद और मूल्य के आधार पर 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री परिवहन से होता है। ऐसे में सैटेलाइट और जासूसी विमानों से निगरानी भारत और उन सभी देशों के सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है जिन्हें चीन अपने मजबूत प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है। 500 मी. तक भेदने की क्षमता चीन से पहले अमेरिका और रूस भी महासागर के अंदर पनडुब्‍बी को निशाना बनाने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं हालांकि कोई भी देश पांच सौ मीटर गहराई तक भेदने में सफल नहीं हो सका। अब चीनी वैज्ञानिक रडार तकनीक के साथ इस पर काम कर रहे हैं। आपके बच्‍चे को सहेज कर रखता है ये रोबोट, जानिए कितनी है इसकी कीमत यह भी पढ़ें नासा की कोशिश जारी हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के फंड रिसर्च प्रोजेक्ट में कुछ हद तक सफलता मिली है जिसमें डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी ने एक लेजर डिवाइस तैयार किया। इसे एक जासूसी विमान पर लगाकर महासागर के अंदर 200 मीटर गहराई तक बमबारी की जा सकेगी। हालांकि न्यूनतम गहराई तक जाने में ये भी नाकाफी है। अंतरिक्ष से निगरानी चीन के पायलट नेशनल लेबोरेटरी फॉर मरीन साइंस और टेक्नोलॉजी में इस डिवाइस को तैयार किया जा रहा है। चीनी वैज्ञानिकों ने पिछले साल सरकार को इस तकनीक की जानकारी दी और इस साल मई में सरकारी धन के साथ इस योजना पर काम शुरू हुआ। इसे डिवाइस को विमान के साथ साथ सैटेलाइट पर लगाकर चीन अंतरिक्ष से निगरानी भी कर सकेगा। दक्षिण चीन सागर में फिर दिखी तल्‍खी, चीन ने अमेरिकी जंगी जहाज का रास्ता रोका यह भी पढ़ें बड़ी चुनौती है सटीक निशाना समुद्र की सतह को भेदते हुए 500 मीटर गहराई तक लेजर बमबारी करना कठिन काम है क्योंकि सटीक निशाना, पानी में विचलन नियंत्रित करने जैसी कुछ चुनौतियां भी होंगी। समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर इस डिवाइस के तैयार हो जाने पर महासागर में चीन अन्य देशों से ज्यादा शक्तिशाली बन जाएगा। न सिर्फ सैन्य बल्कि व्यवसायिक और सवारी जहाज के यातायात के लिए भी चुनौती खड़ी हो सकती हैं। चीन वैश्विक तौर पर सभी तरह की समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर के रूप में खुद को मजबूत कर सकता है।

भारत की चिंता
पिछले कुछ सालों में चीन ने हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। म्यांमार, श्रीलंका, जिबूती और पाकिस्तान के बाद मालदीव में बढ़ते चीन का प्रभाव भी भारत के लिए एक इशारा है। भारत समुद्र के रास्ते से अधिकांश व्यापार करता है। जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार, मात्रा के आधार पर 95 फीसद और मूल्य के आधार पर 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री परिवहन से होता है। ऐसे में सैटेलाइट और जासूसी विमानों से निगरानी भारत और उन सभी देशों के सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है जिन्हें चीन अपने मजबूत प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है। 500 मी. तक भेदने की क्षमता चीन से पहले अमेरिका और रूस भी महासागर के अंदर पनडुब्‍बी को निशाना बनाने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं हालांकि कोई भी देश पांच सौ मीटर गहराई तक भेदने में सफल नहीं हो सका। अब चीनी वैज्ञानिक रडार तकनीक के साथ इस पर काम कर रहे हैं।

नासा की कोशिश जारी
हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के फंड रिसर्च प्रोजेक्ट में कुछ हद तक सफलता मिली है जिसमें डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी ने एक लेजर डिवाइस तैयार किया। इसे एक जासूसी विमान पर लगाकर महासागर के अंदर 200 मीटर गहराई तक बमबारी की जा सकेगी। हालांकि न्यूनतम गहराई तक जाने में ये भी नाकाफी है।

अंतरिक्ष से निगरानी
चीन के पायलट नेशनल लेबोरेटरी फॉर मरीन साइंस और टेक्नोलॉजी में इस डिवाइस को तैयार किया जा रहा है। चीनी वैज्ञानिकों ने पिछले साल सरकार को इस तकनीक की जानकारी दी और इस साल मई में सरकारी धन के साथ इस योजना पर काम शुरू हुआ। इसे डिवाइस को विमान के साथ साथ सैटेलाइट पर लगाकर चीन अंतरिक्ष से निगरानी भी कर सकेगा।

बड़ी चुनौती है सटीक निशाना
समुद्र की सतह को भेदते हुए 500 मीटर गहराई तक लेजर बमबारी करना कठिन काम है क्योंकि सटीक निशाना, पानी में विचलन नियंत्रित करने जैसी कुछ चुनौतियां भी होंगी। समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर इस डिवाइस के तैयार हो जाने पर महासागर में चीन अन्य देशों से ज्यादा शक्तिशाली बन जाएगा। न सिर्फ सैन्य बल्कि व्यवसायिक और सवारी जहाज के यातायात के लिए भी चुनौती खड़ी हो सकती हैं। चीन वैश्विक तौर पर सभी तरह की समुद्री गतिविधियों के डाटा सेंटर के रूप में खुद को मजबूत कर सकता है।

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