पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर (सीपीईसी या सीपेक) पर पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टिंग को विकृत तथ्यों और एकतरफा विचारों पर आधारित गलत सूचना बताते हुए इसे खारिज कर दिया. समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक योजना, विकास और सुधार मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि पाकिस्तान ने अनुकूल वित्तीय व्यवस्थाओं के कारण सीपीईसी के अंतर्गत चीनी निवेश का विकल्प चुना है.
इसमें कहा गया है कि जिस समय विदेशी निवेश खत्म हो गया और ऊर्जा की कमी और संरचनात्मक अंतर के कारण आर्थिक गतिविधियां रेंग रही हैं, पाकिस्तान के विकास के लिए चीन एक कदम आगे आया है. मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से खारिज किया कि सीपीईसी से कर्ज वापसी, ऊर्जा क्षेत्र में खर्च जैसे तत्कालिक बोझ बढ़ गए हैं. मंत्रालय ने कहा कि कॉरीडोर के खर्च 2021 से शुरू होकर 20 से 25 साल चलेंगे जिनमें सबसे ज्यादा खर्च 2024 और 2025 में होगा. मंत्रालय ने कहा कि सीपीईसी से पाकिस्तान में निवेश की संभावनाएं बढ़ी हैं और इन निवेशों से देश की अर्थव्यवस्था मौजूदा हालात से बहुत आगे जाएगी.
सीपेक का असली नाम है बीआरआई
बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) चीन के इतिहास की सबसे महत्वकांक्षी योजना है. इसके तहत ‘ड्रैगन’ विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है. पश्चिमी जगत की मीडिया के अनुसार चीन इस परियोजना में खरबों रुपयों का निवेश दो वजहों से कर रहा है. एक तो विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करने के अलावा चीन इसके सहारे अपनी धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में भी नई जान फूंकना चाहता है. वहीं दूसरा, उनका ये भी मानना है कि पहले से विश्वभर में हो रहे चीनी निवेश और बढ़ते प्रभुत्व को बीआरआई के रूप में बस एक नया नाम दे दिया गया है.
ब्रिटेन के भरोसेमंद मीडिया हाउस में शुमार द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट में लिखा है कि जब शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने उसके बाद उन्होंने एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने की एक महत्कांक्षी परियोजना की घोषणा की. इसी परियोजना को परिभाषित करने के लिए मौटे तौर पर बीआरआई का नाम स्वीकार किया गया जिसके तहत वो सारी आर्थिक और भू-राजनीतिक बातें आ जाएं जो चीन के नेतृत्व में हो रही हैं. बेल्ट एंड रोड जिसे चीनी भाषा में या डाई यी लू कहेंगे, चीन का 21वीं सदी का सिल्क रोड है. इसका मतलब व्यापार के उन जमीनी गलियारों और समुद्री मार्ग से है जिसके रास्ते व्यापार को आसान बनाने की तैयारी है.
भारत की चिंताएं
जब मई के महीने में नेपाल ने चीन की इस महत्वकांक्षी योजना का हिस्सा बनने पर सहमति जताई, तब भारत इकलौता सार्क देश रह गया जो इससे बाहर था. हालांकि, भूटान भी चीन की इस परियोजना का हिस्सा नहीं है. लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक ताल्लुकात है ही नहीं. भारत इस योजना का प्रखर विरोधी रहा है और इसके विरोध के पीछे सबसे बड़ी वजह चीन पाकिस्तान कॉरिडोर (सीपेक) रही है. चीन ने जानकारी साझा करते हुए विश्व को बताया कि इसके तहत पाकिस्तान में 46 बिलियन डॉलर (लगभग 56,81,00,00,00,000 पाकिस्तानी रुपए) का निवेश किया गया है.
वहीं, भारत ने इस बात पर भी विरोध जताया है कि वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर- इस योजना क पुराना नाम) को लेकर भारत का कोई विरोध नहीं है, लेकिन इससे भारत को ख़तरा है क्योंकि पाकिस्तान में इसके तहत जो सड़क बनाई जानी है वो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है. भारत की इस चिंता पर चीन का यही रुख रहा है उन्होंने इस मामले पर अपनी पलकें भी नहीं झपकाई हैं.
क्यों बदला नाम
पहले इस परियोजना का नाम वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) था. इस नाम को लेकर ये आपत्ति जताई गई कि इससे चीन का एकतरफा प्रभुत्व झलकता है जिसे चीन ने भी ये सोचते हुए मान लिया कि इससे इसका हिस्सा बनने वाले देशों के बीच गलत संदेश जा सकता है. इसी वजह से बाद में इस परियोजना का नाम बदलकर बीआरआई कर दिया गया जिससे कम से कम नाम में चीनी प्रभुत्व समाप्त होता नज़र आया.