एक नई किताब में यह दावा किया गया है कि 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी भारत यात्रा के दौरान तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा से मिलने पर सहमत हुए थे लेकिन भारत सरकार ‘एहतियात’ बरत रही थी, जिसकी वजह से यह ऐतिहासिक बैठक नहीं हो पाई. दलाई लामा 1959 की शुरुआत में चीन से भागकर हिमाचल प्रदेश के शहर धर्मशाला आ गए थे.चीन का कहना है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन धार्मिक अनुष्ठान और ऐतिहासिक परिपाटी सहित सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से होना चाहिये. दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर चीन के सामने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.‘डिफाइनिंग इंडिया: थ्रो देयर आइज’ में 15 लोगों का साक्षात्कार किया है जिसमें संबंधित लोगों ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों का जिक्र किया है.
यह किताब ‘पेंग्विन रैंडम हाउस इंडिया’ से प्रकाशित हुई है जिसमें अमर्त्य सेन, आमिर खान, रघुराम राजन, सचिन तेंदुलकर, दलाई लामा, प्रणब मुखर्जी, अरूण जेटली, निर्मला सीतारमण और सानिया मिर्जा का साक्षात्कार है. दलाई लामा का कहना है कि चीन-भारत का संबंध काफी महत्वपूर्ण है. लामा ने किताब में कहा है, ‘‘ न तो भारत और न ही चीन एक-दूसरे को बर्बाद करना चाहते हैं. हमें एक-दूसरे के साथ-साथ रहना है. हमारा अंतिम लक्ष्य हिंदी-चीनी भाई-भाई है. यही एक वास्तविक तरीका है.’’ चीन के साथ अपने संबंध पर दलाई लामा ने लेखक को बताया है, ‘‘ 2014 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने आए थे तो मैंने उनसे मिलने की इच्छा जताई थी और जिनपिंग सहमत भी हुए थे, लेकिन भारत सरकार बैठक को लेकर सतर्क थी और इसलिये यह मुलाकात नहीं हो पाई.’’