आचार्य चाणक्य की गणना विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों में की जाती है। उनके द्वारा रचित चाणक्य नीति वर्तमान समय में लाखों युवाओं का मार्गदर्शन कर रही है। चाणक्य नीति में धर्म, अर्थ और कर्म के साथ-साथ जीवन की विभिन्न महत्वपूर्ण नीतियों के बारे में आचार्य द्वारा विस्तार से बताया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि व्यक्ति को कैसे कर्म करने से मोक्ष की प्राप्त होती है। चाणक्य नीति के इस भाग में आज हम बात करेंगे कि मनुष्य के जीवन में दान का क्या महत्व है। आइए जानते हैं

चाणक्य नीति से जानिए दान का महत्व
नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ।।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि अन्न और जल के दान के समान कोई दान नहीं। द्वादशी तिथि के समान कोई तिथि नहीं, गायत्री से बड़ा कोई मंत्र नहीं और मां से बढ़कर इस सृष्टि में कोई देवता नहीं। इसलिए मनुष्य को हर समय अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए। इससे न केवल मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि भी आती है।
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन ।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक में बताया गया है कि केवल दान से हाथों की सुन्दरता में वृद्धि होती, न ही कंगन पहनने से, और न ही स्नान करने से। चंदन का लेप भी वह चमक नहीं ला सकती है। वहीं तृप्ति मान-प्रतिष्ठा से बढ़ती है, न कि भोजन से और मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से होती है, श्रृंगार से नहीं। इसलिए को दान देने से, मान का सम्मान करने से और ज्ञान अर्जित करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। जो इन सभी में अग्रिम होता है, वही श्रेष्ठ कहलाता।
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