चकराता का प्राकृतिक सौंदर्य और लुभावने मंजर देख रह जाएंगे चकित, जन्नत से भी…

यह एक छोटे और सुंदर पहाड़ी नगर के रूप में नजर आता है। रोजमर्रा की जिंदगी और महानगरों के शोर से दूर कुछ पल शांति से बिताने वालों के लिए यह खास ठिकाना है। वैसे, यदि आप कुदरती खूबसूरती के साथ-साथ रोमांचक खेलों का लुत्फ भी उठाना चाहते हैं तो इस लिहाज से यह एक आदर्श स्थल है। जौनसार-बावर का यह क्षेत्र यानी चकराता और इसके आसपास कैंपिंग, राफ्टिंग, ट्रेकिंग, रैपलिंग, रॉक क्लाइंबिंग का आनंद उठा सकते हैं। यहां हर तरफ ऐतिहासिक, पुरातात्विक, सामाजिक और सांस्कृतिक वैभव बिखरा हुआ है। यहां आते ही आप कह उठेंगे कि यही तो है कोई ख्वाबों की दुनिया!

 

जौनसार-बावर के पारंपरिक घर: यमुना, टोंस व पावर नदी के बीच बसे जौनसार-बावर का इलाका 463 वर्ग मील में फैला हुआ है। यमुना नदी के पार होने के कारण यह क्षेत्र जमना पार का इलाका कहलाता है। यही कालांतर में जौनसार नाम से प्रचलित हो गया। उत्तर दिशा वाले क्षेत्र को पावर नदी के कारण बावर कहा जाने लगा। इसके पूर्व में यमुना नदी, उत्तर दिशा में उत्तरकाशी व हिमाचल का कुछ क्षेत्र, पश्चिम में टोंस नदी और दक्षिण में पछवादून-विकासनगर क्षेत्र पड़ता है। इसी क्षेत्र में बसा है चकराता नामक छावनी क्षेत्र भी।

जौनसार-बावर आएं तो आपको यहां के पारंपरिक मकान चकित करेंगे। पत्थर और लकड़ी से बने ये मकान पगोडा शैली में बने हैं। इन मकानों की ढलावदार छत पहाड़ी स्लेटी पत्थर से निर्मित है। दो, तीन या चार मंजिल वाले इन मकानों की हर मंजिल पर एक से चार कमरे बने होते हैं। सर्दी में ये मकान सर्द नहीं होते हैं। एक और खास बात, इन मकानों के निर्माण में ज्यादातर देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। उस पर की गई महीन नक्काशी की खूबसूरती देखते ही बनती है।

ट्रेकिंग, रेफलिंग के लिए खास: ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए जौनसार-बावर की खूबसूरत वादियां खास तौर पर अनुकूल हैं। स्थानीय निवासी नेशनल शूटर पंकज चौहान कहते हैं, जब सीजन अनुकूल रहता है तो यहां पर्यटकों की भीड़ लग जाती है। साहसिक पर्यटन के लिहाज से चकराता की पहाड़ियां ट्रेकिंग व रेफलिंग के शौकीनों के लिए मुफीद मानी जाती हैं। यहां चकराता के पास मुंडाली, बुधेर, मोइला टॉप, खंडबा, किमोला फॉल और आसपास की चोटियों पर ट्रेकिंग व रेफलिंग कराई जाती है। यहां बुधेर के पास गुफा व छोटी-बड़ी चोटियों की शृंखला है। स्थानीय लोखंडी होटल संचालित करने वाले रोहन राणा बताते हैं, गर्मियों में ट्रेकिंग के लिए विभिन्न शहरों व महानगरों से सैलानी पहुंचते हैं। पर्यटकों को ट्रेकिंग, रेफलिंग कराने के लिए कुशल प्रशिक्षक रखे गए हैं।

यादों का खूबसूरत घर: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने वर्ष 1815 में जौनसार-बावर को अपने अधीन ले लिया था। समुद्र तल से करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चकराता को ब्रिटिश काल में ही छावनी क्षेत्र के रूप में बसाया गया। 55वीं सिरमौर रेजीमेंट के कर्नल एच.रॉबर्ट ह्यूम ने वर्ष 1869 में चकराता छावनी की स्थापना की थी। इससे पूर्व इस दौरान मसूरी से चकराता की पहाड़ियों से होकर शिमला तक पैदल मार्ग बनाया गया। वर्ष 1927 में चकराता कैलाना छावनी में जिम्नेजियम सिनेमा की दो शाखाएं थीं, जहां केवल गर्मियों में ही सिनेमा दिखाया जाता था। यहां पुराने दौर के बने हुए रोमन कैथोलिक व स्कॉटिश चर्च भी हैं, जो बीते समय की कहानी सुनाते नजर आते हैं।

1957 में चकराता आए थे पं. नेहरू: देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष 1957 में चकराता क्षेत्र का दौरा किया था। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में पर्वतीय विकास राज्यमंत्री रहे गुलाब सिंह पं. नेहरू को चकराता लाए थे। जौनसार-बावर क्षेत्र को अलग बोली-भाषा, पहनावा, रीति-रिवाज, अनूठी संस्कृति व परपंरा के मद्देनजर तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1967 में जनजातीय क्षेत्र घोषित किया था।

 

बुधेर : एशिया का बेहतरीन जंगल

चकराता के समीप 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मखमली घास का मैदान बुधेर (मोइला दंडा) कहलाता है। बुधेर एशिया के बेहतरीन जंगलों में से एक है। यहां चूना पत्थर की प्रचुरता की वजह से कई छोटी-बड़ी गुफाएं भी हैं। यहां देवदार वन के बीच स्थित चकराता वन प्रभाग द्वारा निर्मित विश्राम गृह में ठहरना भी बेहद सुकूनदायक है।

मुंडाली-खडंबा में करें ट्रेकिंग

यदि आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं और इसके नए-नए ठिकानों की तलाश में रहते हैं तो यहां आएं। यहीं चकराता के समीप लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित मुंडाली व खडंबा की पहाड़ियां हैं। ये ट्रेकिंग के लिए पंसदीदा जगहें बनती जा रही हैं। यहां आसपास बने लोक देवी-देवताओं के मंदिर भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।

शेर की दहाड़ जैसी गर्जना करता झरना

टाइगर फॉल (1395 मीटर) छावनी बाजार चकराता से 17 किमी. दूर लाखामंडल मार्ग पर स्थित है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी शेर की दहाड़ जैसी आवाज है। यदि आप यहां से गुजरते हैं तो इसकी आवाज आपको अपनी ओर खींच लाएगी। हालांकि शेर की तरह दहाड़ते इस झरने के आसपास का नजारा भी बेहतरीन है। एक बार यहां आएं और देर तक ठहरकर ढेर सारी ऊर्जा लेकर वापस जाएं।

 

कोटी-कनासर का सुंदर बुग्याल

मसूरी-चकराता-त्यूणी हाइवे पर चकराता से 31 किमी. दूर कोटी-कनासर बुग्याल (मखमली घास का मैदान) है। समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर देवदार के जंगलों से घिरे इस बुग्याल को देखना अचरजभरा है। यहां देवदार के 600 वर्ष पुराने वृक्ष आज भी मौजूद हैं। आप तकरीबन 6.5 फीट की गोलाई वाले इन वृक्षों को देखकर यहां की वन संपदा पर गर्व करने लगेंगे।

हनोल में विराजते महासू महाराज

सिद्धपीठ श्री महासू देवता का मंदिर हनोल में स्थित है। नागर शैली में बना यह मंदिर समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। देहरादून से मसूरी-पुरोला, विकासनगर-चकराता या हरिपुर-मीनस होते हुए हनोल पहुंचा जा सकता है। महासू स्थानीय लोगों के आराध्य देव हैं।

चार जिलों का केंद्र त्यूणी बाजार

जौनसार-बावर का सीमांत त्यूणी कस्बा उत्तराखंड के देहरादून व उत्तरकाशी जिलों के साथ हिमाचल प्रदेश के शिमला व सिरमौर जिलों का केंद्र बिंदु है। समुद्र तल से एक हजार मीटर की ऊंचाई पर बसे त्यूणी बाजार आने-जाने के लिए दो हाइवे समेत चार मोटर मार्ग हैं।

अनूठी है चीड़ महावृक्ष की समाधि!

इस इलाके में एक से बढ़कर एक अचरज भरी चीजें मिलेंगी। जैसे, यदि आप हनोल जा रहे हैं तो यहां से पांच किमी. दूर त्यूणी-पुरोला राजमार्ग पर स्थित खूनीगाड में एशिया महाद्वीप के सबसे ऊंचे चीड़ महावृक्ष की समाधि देख सकते हैं। दरअसल, चीड़ महावृक्ष के धराशायी होने के बाद टोंस वन प्रभाग की ओर से इसकी सभी डाटें यहां सुरक्षित रखी गई हैं। इसके दीदार के लिए देश-विदेश के पर्यटक बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं।

देववन से हिमालय का खूबसूरत नजारा

चकराता के पास देववन की ऊंची चोटी से हिमालय का मनमोहक नजारा भावविभोर कर देता है। देववन व कनासर में वन विभाग का ट्रेनिंग कैंप है, जहां वन विभाग के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। चिरमिरी से सूर्यास्त का नजारा चकराता से चार किमी. की दूरी पर चिरमिरी नामक जगह से शाम के वक्त सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। चकराता की सैर पर आए पर्यटक सूर्यास्त के समय चिरमिरी जाकर प्रकृति को करीब से निहारने का सुख पाते हैं।

लाखामंडल का आकर्षण

चकराता से 62 किमी. दूर समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है लाखामंडल। लाखामंडल के इस पूरे क्षेत्र में सवा लाख शिवलिंगों का संग्रह है। यमुना नदी के किनारे बसे लाखामंडल के प्राचीन शिव मंदिर की ऊंचाई 18.5 फीट है। छत्र शैली में बने इस शिव मंदिर का निर्माण सिंहपुर के यादव राजवंश की राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति जालंधर के राजा चंद्रगुप्त की स्मृति में करवाया था। मंदिर बड़े शिलाखंडों से निर्मित है। यहां मिले शिलालेख में ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा का उल्लेख है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी लाखामंडल की यात्रा की थी। मंदिर को आठवीं सदी का बताया जाता है। हालांकि स्थानीय लोग इसे पांडवकालीन बताते हैं।

परंपराओं की स्वादिष्ट थाली

जौनसार-बावर और चकराता आएं तो आपको एक और चीज जो सबसे खास लगेगी, वह है यहां की मेहमाननवाजी। यहां घर आए मेहमानों को कांसे की थाली में खाना खिलाया जाता है। आसपास खाने-पीने की बड़ी दुकानें नहीं हैं, लेकिन जो भी हैं, वहां से आप यहां के परपंरागत व्यंजन सीडे, अस्के का स्वाद ले सकते हैं। लाल चावल, मीट, कचौड़ी, राजमा व उड़द की दाल, लाल चावल की खिचड़ी, तिल-भंगजीरे की चटनी, पहाड़ी खीरे के सलाद जैसे व्यंजनों को यहां रोजमर्रा के खानपान में शामिल किया जाता है। यहां की जौनसारी महिलाएं बड़ी खुशमिजाज होती हैं। वे इन लजीज व्यंजनों को बनाने में कड़ी मेहनत करती हैं। यदि आपको कभी इस इलाके में घूमने का अवसर मिले तो आप खुद पाएंगे कि ऐसी मेहमाननवाजी और परंपराओं की स्वादिष्ट थाली दूसरी जगह बहुत कम देखने को मिलती है।

कब और कैसे जाएं?

देहरादून से चकराता की दूरी सड़क मार्ग से करीब 90 किमी. है। देहरादून से आप दो रास्तों मसूरी-नागथात और विकासनगर-कालसी होकर बस, टैक्सी या अन्य छोटे वाहनों से चकराता पहुंच सकते हैं। चकराता क्षेत्र में पेट्रोल पंप की सुविधा नहीं है, इसलिए निजी वाहन से आने वाले पर्यटक विकासनगर व कालसी में टैंक फुल कराकर ही यहां आएं। जॉली ग्रांट (देहरादून) चकराता से 113 किमी. की दूरी पर स्थित निकटतम हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है। जौनसार-बावर की खूबसूरत वादियों का लुत्फ लेने के लिए मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है। जून के आखिर से सिंतबर के मध्य यहां बरसात होती है, जबकि सर्दियों में यहां जबर्दस्त ठंड पड़ती है।

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