गोकुल में इस दिन मनाई जाएगी लठ्ठमार होली, जानिए पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में होली का त्योहार बेहद ही खास माना गया है। आप सभी जानते ही होंगे रंगों का ये त्योहार मन को उल्लास से भरने वाला है। जी हाँ और पूरे भारत में होली धूमधाम से मनाई जाती है। हालाँकि भारत में एक ऐसी भी जगह है जहां पर होली का अलग ही जश्न नजर आता है। जी हाँ और वह है ब्रज की होली। जी दरअसल यहां की होली को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। आप सभी को बता दें कि ब्रज के खास होली महोत्सव की शुरुआत इस साल 10 मार्च से ही हो जाएगी, जिसमें सबसे पहले 10 मार्च को लड्डू होली का आयोजन किया जाएगा। आपको पता ही होगा मथुरा में लड्डू होली के अलावा फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगवाली होली और छड़ीमार होली का खूब जश्न मनाया जाता है। अब आज हम आपको बताते हैं छड़ीमार होली की शुरुआत कब हुई और इसे मनाने के पीछे की परंपरा क्या है?

क्यों मनाई जाती है लठ्ठमार होली?- कहा जाता है भगवान कृष्ण का बचपन गोकुल में ही बीता था। वहीं यह मान्यता है छड़ीमार होली के दिन बाल कृष्ण के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं, क्योंकि भगवान बालस्वरूप थे। इस भावमयी परंपरा के अनुरूप कहीं उनको चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है। आप सभी जानते ही होंगे कि बचपन में कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। उस समय गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता था।

इस वजह से गोकुल में उनके बालस्वरूप को अधिक महत्व दिया जाता है और इसलिए नटखट कान्हा की याद में हर साल छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। इस दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं। कहते है कि होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। जी हाँ और गोपियों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है।

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