शुक्र है गुरु की पारखी नजरों ने उस मासूम छात्रा के मन की पीड़ा पढ़ ली, नहीं तो उस बेचारी के साथ जाने क्या होता…मां ने तो मासूम के पढ़ने-लिखने के सपने को चकनाचूर करने की ठान ही ली थी, वह भी अपनी आंखों पर पड़े ‘अतिविश्वास’ के पर्दे के कारण। लेकिन, मासूम के लिए फरिश्ता बनीं उसकी स्कूल की प्रधानाचार्य। शिक्षिका ने न केवल उसकी मां की आंखें खोलीं, बल्कि अपने ही घर में छेड़छाड़ से पीड़ित मासूम की जिंदगी तबाह होने से बचा ली।
इस वेदना से गुजरी राजधानी में रह रहे एक गरीब परिवार की छठी में पढ़ने वाली बच्ची। उसके पिता काम के सिलसिले में बिहार में रहते हैं। परिवार का खर्च चलाने के लिए मां यहां एक संस्थान में गार्ड की नौकरी करती है। मां को सुबह ही घर से निकलना पड़ता था, सो उसने बच्ची की देखभाल के लिए उसके नाना को घर पर बुला लिया। कुछ दिनों बाद ही नाना बच्ची पर गलत निगाह रखने लगा। नाना की हरकत यहीं नहीं रुकी, मौका मिलने पर वह उससे छेड़छाड़ करने लगा
इससे परेशान मासूम स्कूल से आने के बाद मां के लौटने तक का वक्त घर से बाहर हमउम्र बच्चों के संग बिताने लगी। नाना को यह रास नहीं आया, और उसने मां से झूठी शिकायत कर डाली कि उसकी बेटी बिगड़ती जा रही है, वह घर पर नहीं टिकती है। नाना की हरकतों से तंग बच्ची ने मां को असलियत बताई, लेकिन उसने बेटी की बात पर यकीन नहीं किया। पिता के गलत इरादों से अनजान मां अपनी बेटी की पीड़ा को नहीं समझ सकी और उसने उल्टा उसी पर तोहमत मढ़ दी। यही नहीं, करीब डेढ़ साल पहले मां ने इसी वजह उसे स्कूल छुड़ाने तक की धमकी दे डाली।
अगले दिन बच्ची रोज की तरह स्कूल पहुंची। लेकिन, आम दिनों संगे-साथियों के साथ काफी घुलमिल कर रहने वाली मासूम उस दिन गुमशुम थी। वह न तो किसी से बात कर रही थी और न ही उसका मन पढ़ाई में लग रहा था। बेचैनी उसके चेहरे पर झलक रही थी। उसके मन की पीड़ा को स्कूल की मुखिया शशि भंडारी ने पढ़ने में जरा भी देर नहीं लगाई। उसके हाव-भाव देख उन्हें कुछ गड़बड़ी होने का अंदेशा हुआ। इस पर उन्होंने बच्ची को विश्वास में लेकर परेशानी की वजह पूछी तो उसने पूरा किस्सा बता दिया। यह सुन स्कूल मुखिया के पैरों तले जमीन खिसक गई। इसके बाद उन्होंने बेहद सावधानी और बुद्धिमता के साथ इस मामले को संभाला।
स्कूल मुखिया भंडारी उसी दिन छात्रा के साथ उसके घर गईं और उसकी मां से बात की। पहले तो मां अपने पिता के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं हुई। काफी प्रयासों के बाद प्रधानाचार्य उन्हें समझाने में कामयाब हो पाईं। मां को उन्होंने बताया कि उनकी बेटी अपने ही घर में रोज-रोज घुट-घुट कर मर रही है। उसकी पीड़ा मां-बाप नहीं, तो कौन समझेगा। आखिरकार मां को बेटी के दर्द का एहसास हुआ और उसने अपने पिता को घर से जाने को कह दिया। इस तरह गुरु की बदौलत मासूम को घर में हो रहे उत्पीड़न से न केवल निजात मिली, बल्कि अपनी पढ़ाई जारी रखने का मौका भी मिला।
गुरु की ये भी नसीहतें
– गुड टच, बैड टच को लेकर माता-पिता को जागरूक होने की जरूरत
– कई बार बच्चे डर के मारे परेशानी साझा नहीं करते, उनके मन की पीड़ा समझें
– बच्चे के उदास और गुमशुम दिखने पर उसकी परेशानी जानने की कोशिश करें
– अतिविश्वास में अपने ही बच्चे की को गलत ठहराने का प्रयास न करें
– यह न भूलें कि, विकृत मानसिकता वाले अपने भी कर सकते हैं शर्मनाक करतूत
– मां और पिता के साथ ही अभिभावक मुश्किल समय में बच्चों का दें साथ
कॉलेज की प्रधानाचार्य शशि भंडारी बताती हैं कि हम सभी को गुड टच-बैड टच को लेकर जागरुक होना होगा। आम तौर पर हमारी अवधारणा यही रहती है कि छेड़छाड़ बाहर का व्यक्ति ही कर सकता है, जबकि अधिकांश मामले ऐसे आते हैं जहां रिश्तेदार व घर के सदस्य ही छेड़छाड़ में शामिल रहते हैं। ऐसे मामलों में अभिभावक बच्चों पर भी आसानी से विश्वास नहीं करते हैं।