गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता: धर्म

हिंदु धर्म में विभिन्न तिथियों में सनातन संस्कृति के पर्वों को मनाया जाता है। इन सभी पर्वों का शास्त्रोक्त महत्व होता है और इनकी कथा किसी देवी-देवता से संबंधित होती है।

इसलिए इन तिथियों पर संबंधित देवताओं की पूजा कर उनको उनके प्रिय व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। ऐसा ही एक शास्त्रोक्त पर्व गुड़ी पड़वा है, जो महाराष्ट्र, गोवा सहित देश के दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में मनाया जाता है।

गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन जगत पिता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इस दिन हिंदू कैलेंडर का प्रारंभ हुआ था।

इसलिए इस दिन को नवसंवत्सर के रूप में देश में मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारों से दक्षिण भारत की प्रजा को मुक्ति दिलवाई थी इसलिए इस दिन को महाराष्ट्र और दक्षिण के कुछ प्रांतों के लोग विजय के रूप में मनाते हैं और इसके प्रतीक स्वरूप घर के मुख्य द्वार पर गुड़ी को बांधते हैं। इसलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा कहा जाता है।

दक्षिण भारत के इलाके में रामायण काल में राजा बाली का शासन था। भगवान राम को लंका पर चढ़ाई और माता सीता की मुक्ति के लिए सेना की जरूरत थी। उस समय सुग्रीव ने श्रीराम की मदद की थी।

उस समय सुग्रीव राजा बाली से परेशान थे और बाली के राज्य की प्रजा भी। उस समय श्रीराम ने बाली का वध कर सुग्रीव और प्रजा दोनों को मुक्ति दिलवाई थी।

इस दिन महाराष्ट्र में पारंपरिक व्यंजन पूरन पोली को बनाने की परंपरा है। इसके साथ ही इस दिन गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चे आम का भी सेवन किया जाता है। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर अशोक या आम के पत्तों की बंदनवार लगाने की भी परंपरा है।

Gudi Padwa तिथि – 25 मार्च, बुधवार

Gudi Padwa का प्रारंभ – 24 मार्च 2 बजकर 57 मिनट से

Gudi Padwa का समापन – 25 मार्च 5 बजकर 26 मिनट पर

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