गांवों का दर्द: पलायन की मार झेल रहा है उत्तराखंड

पलायन निवारण आयोग की इस वर्ष जारी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के 1792 गांव घोस्ट विलेज घोषित हो चुके हैं। इनमें एक नाम अल्मोड़ा जिले की क्वेटा ग्राम पंचायत का भी जुड़ने वाला है।मूलभूत सुविधाओं के अभाव में क्वेटा-सुरखाल ग्राम पंचायत की करीब 80 फीसदी आबादी पलायन कर चुकी है। यहां 95 फीसदी खेती बंजर हो चुकी है। गांव में जो 20 फीसदी लोग बचे हैं वे भी सिस्टम की अनदेखी झेल रहे हैं। 

क्वेटा ग्रामसभा में क्वेटा, खैंखाड़, बोरागांव और सुरखाल चार राजस्व ग्राम आते हैं। क्वेटा और खैंखाड़ गांव वीरान हो चुके हैं जबकि सुरखाल गांव भी धीरे-धीरे जनशून्य होता जा रहा है। पलायन कर चुके लोग धार्मिक कार्यों के लिए ही कभी-कभार गांव का रुख करते हैं। 

गांवों का दर्द

  • कोई बीमार हो जाता है तो आस-पास के गांव वालों की मदद से डोली पर उठाकर दो किमी की चढ़ाई चढ़कर पहुंचते है सड़क तक।
  • क्वेटा और खैंखाड़ गांव वीरान हो चुके हैं, सुरखाल गांव भी धीरे-धीरे जनशून्य होता जा रहा है।
  • 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खैंखाड़-क्वेटा-निरई सड़क की घोषणा की थी। सड़क का तीन बार सर्वे हो चुका है, लेकिन सड़क आठ साल बाद भी नहीं बनी।
  • प्राइमरी की पढ़ाई के लिए दो किमी पैदल दूरी और इंटर के लिए 10 किमी जाना पड़ता है बच्चों को।


खैंखाड़-क्वेटा-सुरई सड़क के निर्माण की घोषणा या सर्वे के संबंध में मुझे जानकारी नहीं है। अधीनस्थ अधिकारी से जानकारी लेने के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकेगा।  -सुनील कुमार अधिशासी अभियंता  लोक निर्माण विभाग

पलायन निवारण आयोग की इस वर्ष जारी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के 1792 गांव घोस्ट विलेज घोषित हो चुके हैं। इनमें एक नाम अल्मोड़ा जिले की क्वेटा ग्राम पंचायत का भी जुड़ने वाला है।मूलभूत सुविधाओं के अभाव में क्वेटा-सुरखाल ग्राम पंचायत की करीब 80 फीसदी आबादी पलायन कर चुकी है। यहां 95 फीसदी खेती बंजर हो चुकी है। गांव में जो 20 फीसदी लोग बचे हैं वे भी सिस्टम की अनदेखी झेल रहे हैं। 

क्वेटा ग्रामसभा में क्वेटा, खैंखाड़, बोरागांव और सुरखाल चार राजस्व ग्राम आते हैं। क्वेटा और खैंखाड़ गांव वीरान हो चुके हैं जबकि सुरखाल गांव भी धीरे-धीरे जनशून्य होता जा रहा है। पलायन कर चुके लोग धार्मिक कार्यों के लिए ही कभी-कभार गांव का रुख करते हैं। 

गांवों का दर्द

  • कोई बीमार हो जाता है तो आस-पास के गांव वालों की मदद से डोली पर उठाकर दो किमी की चढ़ाई चढ़कर पहुंचते है सड़क तक।
  • क्वेटा और खैंखाड़ गांव वीरान हो चुके हैं, सुरखाल गांव भी धीरे-धीरे जनशून्य होता जा रहा है।
  • 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खैंखाड़-क्वेटा-निरई सड़क की घोषणा की थी। सड़क का तीन बार सर्वे हो चुका है, लेकिन सड़क आठ साल बाद भी नहीं बनी।
  • प्राइमरी की पढ़ाई के लिए दो किमी पैदल दूरी और इंटर के लिए 10 किमी जाना पड़ता है बच्चों को।


खैंखाड़-क्वेटा-सुरई सड़क के निर्माण की घोषणा या सर्वे के संबंध में मुझे जानकारी नहीं है। अधीनस्थ अधिकारी से जानकारी लेने के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकेगा।  -सुनील कुमार अधिशासी अभियंता  लोक निर्माण विभाग

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